HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 148)

जूतों से ही संबंधित बादशाह अकबर और बीरबल का एक और किस्सा मशहूर है| हुआ यूं कि एक दिन बादशाह अकबर, बीरबल तथा कुछ अन्य दरबारी किसी दावत में गए थे| दावत के बाद जब वे लोग कक्ष से बाहर निकले तो वहां बादशाह को अपने जूते नहीं मिले| जूतों की काफी तलाश की गई पर नहीं मिले… शायद किसी ने चुरा लिए थे|

सुंदन वन में एक शेर रहता था| एक दिन भूख के मारे उसका बुरा हाल था| उस दिन उसे आसपास कोई शिकार नहीं मिला था| अभी वह थककर बैठा ही था कि कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक खरगोश का शावक दिखाई दिया| वह पेड़ कि छाया में उछल-कूद रहा था| शेर उसे पकड़ने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ा| खरगोश शावक ने शेर को अपनी ओर आते देखा तो वह जान बचाने के लिया दौड़ा|

एक बार भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ हस्तिनापुर गए। उनके हस्तिनापुर चले जाने के बाद अक्रूर और कृतवर्मा ने शतधन्वा को स्यमंतक मणि छीनने के लिए उकसाया। शतधन्वा बड़े दुष्ट और पापी स्वभाव का मनुष्य था।

एक भेड़िया था, वह बड़ा ही धूर्त था| एक दिन जंगल में घूमते-घूमते उसे एक मोटा-ताजा मर हुआ बैल पड़ा दिखा| जंगली जीवों ने जगह-जगह से उसे नोंच रखा था| बैल का माँस देखकर भेड़िए के मुहँ में पानी भर आया|

प्राचीन समय की बात है, सिंधुसेन नामक एक दैत्य ने देवताओं को परास्त कर यज्ञ छीनकर उसे रसातल में छिपा दिया। यज्ञ के अभाव में देवताओं का बल, ऐश्वर्य और वैभव नष्ट होने लगा। तब उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।

बादशाह अकबर ने दरबार में बीरबल से कहा – “मैंने पढ़ा था कि एक बार श्रीकृष्ण हाथी की पुकार पर उसे बचाने पैदल ही दौड़ पड़े थे? ऐसा क्यों… वे नौकर-चाकर भी साथ ले सकते जा थे, रथ पर भी जा सकते थे|”

भारत एक त्योहारों का देश है| यहां भिन्न भिन्न जाती , वर्णों , समुदाए और भाषाओँ के लोग आपस मे सह अस्तित्व की भावना से मिल जुल कर रहते हैं| यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई धरम के लोग पर्वो और त्योहारों को धूम धाम से मनाते हैं| फिर भी इसाई धर्म के त्योहार बाकी मतावलंबियों के लिए बहुत हद तक अनजाने ही बने रहते हैं। हालांकि बड़ा दिन यानी २५ दिसम्बर सभी धर्म के लोग मनाते हैं| लेकिन गुड फ्राइडे अभी भी बहुत से लोगों के लिए एक रहस्य है।

पाटिलपुत्र नगर में चार ब्राह्मण मित्र रहते थे| वे निर्धन थे| एक दिन नगर में महात्मा भैरवानन्द का आगमन हुआ| भैरवानन्द की ख्याति सुन चारों ब्राह्मण मित्र उनके पास पहुँच कर बोले- ‘आप त्रिकालदर्शी सिद्ध महात्मा है| आपकी कृपादृष्टि हम जैसे अभागों का भाग्य बदल सकती है|’

किसी नगर में द्रोण नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहा करता था। उसका जीवन भिक्षा पर ही आधारित था। अतः उसने अपने जीवन में न कभी उत्तम वस्त्र धारण किए थे और न ही अत्यंत स्वादिष्ट भोजन किया था। पान-सुपारी आदि की तो बात ही दूर है। इस प्रकार निरंतर दुःख सहने के कारण उसका शरीर बड़ा दुबला-पतला हो गया था।