HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 151)

दिल्ली में देवीदास नामक एक व्यक्ति रहता था| उसे सभी लोग मनहूस कहते थे| उसके बारे में यह किंवदंती मशहूर थी कि जो प्रात: उसका मुंह देख लेता था उसे दिन भर भोजन भी नसीब नहीं होता था|

हम में से बहुत से लोग यही जानते हैं कि राधाजी श्रीकृष्ण की प्रेयसी थीं परन्तु इनका विवाह नहीं हुआ था। श्रीकृष्ण के गुरू गर्गाचार्य जी द्वारा रचित “गर्ग संहिता” में यह वर्णन है कि राधा-कृष्ण का विवाह हुआ था। एक बार नन्द बाबा कृष्ण जी को गोद में लिए हुए गाएं चरा रहे थे। गाएं चराते-चराते वे वन में काफी आगे निकल आए। अचानक बादल गरजने लगे और आंधी चलने लगी।

किसी गाँव में एक नटखट बंदर ने बड़ा उत्पात मचा रखा था| वह लोगों के घरों में घुसकर खाने-पीने की चीजें लेकर भाग जाता| बच्चों-बड़ों को काट खाता| छतों पर सूख रहे कपड़ों को उठाकर ले जाता|

अकबर-बीरबल की नोंक-झोंक में यह एक प्रसिद्ध कथा है और अब तो ‘बीरबल की खिचड़ी’ को मुहावरे के तौर पर भी प्रयोग किया जाता है, जिसका सीधा-सा-अर्थ यह है कि किसी आसान काम को बहुत मुश्किल बताना या फिर किसी छोटे से काम को करने में बहुत अधिक समय लगा देना|

पंचवटी के सघन जंगलों में एक मदमस्त हाथी रहता था| वह जिधर से भी निकलता, उधर ही हाहाकार मच जाता| सभी जानवर प्राण बचाते हुए इधर-उधर भाग खड़े होते| इसी भाग-दौड़ में अनेक जानवर तो जीवन ही गँवा बैठते थे|

दीपावली के दूसरे दिन भाई दूज मनाया जाता है। इसे यम द्वीतिया भी कहते हैं। इस दिन बहनें भाई के मस्तक पर टीका लगाकर उसकी लंबी उम्र की मनोकामना करती है।

एक जंगल में अन्य सभी वृक्ष तो सुंदर व सीधे खड़े हुए थे लेकिन एक वृक्ष ऐसा था जिसका तना भी टेढ़ा था और शाखाएँ भी टेढ़ी-मेडी थी| इसलिए वह कुबड़ा वृक्ष कहलाता था| कुबड़ा होने के कारण न राहगीर ही उसकी छाया में बैठते थे और न पक्षी ही उस पर घोंसला बनाते थे| जबकि अन्य वृक्षों का सभी उपयोग करते थे|