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श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-10 (शनिवार की व्रत कथा)

श्रावण मास माहात्म्य

भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! अब मैं तुम्हें शनिवार व्रत की कथा कहता हूँ| उससे मन्दता दूर हो जाती है| इस महीने में वीर हनुमान, नृसिंह देव तथा शनिदेव, का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए| खम्बे पर जगतपति नृसिंह का लक्ष्मीसहित चित्र अंकित करके उस पर हल्दी व चन्दन का टीका लगाकर पूजन करें| पूजन के लिए नीले तथा पीले फूल लें| नेवैद्य के लिये हाथीचक्क साण व खिचड़ी लें| स्वयं भी खिचड़ी का प्रसाद ग्रहण करें| फिर ब्राह्मणों को भोजन कराकर भगवान नृसिंह को स्नानार्थ तिल के तेल अथवा शुद्ध घृत का प्रयोग करें| शनिवार को प्रत्येक कार्य हेतु तेल को सर्वोत्तम कहा गया है तथा उस दिन सुहागनियों तथा ब्राह्मणों को भी शरीर पर मलने के लिए तेल ही दें|

इस दिन भगवान नृसिंह को प्रसन्न करने के लिए स्वयं तथा परिवार को शरीर पर तेल मलकर स्नानादि से पवित्र होकर भोग लगाने के लिए उड़द की वस्तुएं तैयार करें| इस प्रकार इस मास के सब शनिवारों को व्रत करें| इससे व्रती के घर में लक्ष्मी का वास होता है| धन-धान्य, पुत्रादि प्राप्त होते हैं| व्रती को मरणोपरांत मोक्ष मिलता है| जीवित अवस्था में उसे संसार में समस्त सुख मिलते हैं|

शिव बोले – हे सनत्कुमार! मैं तुम्हें भगवान नृसिंह के व्रत की सर्वोतम विधि बतलाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनो|

एक लंगड़े ब्राह्मण या दूसरे ब्राह्मण को तिल के तेल से उसके सम्पूर्ण शरीर में मालिश कराकर पर गर्म पानी से स्नान कराकर उसे ‘नृसिंह व्रत’ की विधि से भोजन कराकर शनि के प्रतीक के रूप में उसे लोहा, तिल अथवा तेल का दान दें| उस समय मन में यह भाव रखें कि इस प्रकार शनिदेव प्रसन्न होंगे| शनिदेव की अर्चना के लिये तिल, चावल और उड़द को सर्वोत्तम माना गया है|

शिव बोले – हे सनत्कुमार! अब मैं तुम्हें यह बतलाता हूँ| कि शनिदेव का ध्यान कैसे लगाया जाता है? शनिदेव काले रंग के होते हैं| उनका गोत्र कश्यप तथा जाति मन्द है| उनका जन्म स्थल सौराष्ट्र देश है| सूर्यनारायण पुत्र का वर देते हैं| यह इन्द्र-नीलमणि के समान कान्तिमान हैं| बाण, धनुष तथा त्रिशूल इनके अस्त्र हैं| अधिदेव यम हैं और प्रव्यक्तिदेव स्वयं ब्रह्मा हैं| इनको कस्तूरी, अगरू, चन्दन तथा गुगल प्रिय हैं तथा नैवेद्य के लिए इनको खिचड़ी अच्छी लगती है| शनिदेव की पूजा के लिए लोहे की तस्वीर स्थापित कराकर दान के लिए काले वर्ण का ब्राह्मण चुनना चाहिए| उसको दान में काली तथा बछड़े वाली गाय के साथ दो काले कपड़े दें| तत्पश्चात् प्रतिमा का पूजन करें| इस व्रत की कथा इस प्रकार सुनें –
प्राचीन काल में जब राजा नील का राज्य नष्ट हो गया तो उसने अपने राज्य को बचाने के लिए शनिदेव का व्रत किया था| उस पर शनिदेव ने हर्षित हो उसे फिर से शासन दिलवा दिया| प्राणी को मन में यह धारण कर ‘शनिदेव मुझ पर प्रसन्न हों|’ पूजा करनी चाहिए| जो प्राणी इस विधि से श्रावण मास में शनि का व्रत करेंगे उन्हें जीवन में शनि के कोप का शिकार नहीं होना पड़ेगा|

प्राणी को चाहिए कि वह शनिदेव की पूजा इस प्रकार करे – ‘हे शनिदेव! समान कीर्तिमान, बहुत अधिक मन्द भ्रामी छाया नामक स्त्री से सूर्य द्वारा उत्पन्न हो, मैं ऐसे शनिदेव को बारम्बार प्रणाम करता हूँ| मन्डलकोण में स्थित पिंगल नाम वाले शनि देव को मैं प्रणाम करता हूँ| हे देवाधिदेव! आप मुझे अति दीन-हीन पर अपना वरदहस्त रखकर मेरा कल्याण करें|’ इस विधि से प्रार्थना द्वारा बार-बार नमस्कार करना चाहिए|

पूजा करते समय ‘शन्नी देवो’ मंत्र का उच्चारण करना चाहिए| शूद्र के लिए ‘नाममंत्र’ तथा अन्य तीन वर्णों के लिए वैदिक मंत्र बतलाया गया है| मन में सावधान हो नियम द्वारा शनिदेव का पूजन करने वालों को कभी भी स्वप्न में भय नहीं लगता है| श्रावण मास में श्रद्धा व विनय से पूजा करने वालों को पीड़ा नहीं सताती है| पीड़ा तब मिलती है जब शनि जन्म राशि प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, अष्टम, नवम व द्वादश घर में हो| ग्रह की शान्ति के लिये ‘शामाग्नि’ मंत्र का जाप करें| परन्तु शनिदेव को प्रसन्नतार्थ इन्द्र-नीलमणि दान में दें|

शिव बोले-हे पुत्र! अब मैं तुम्हें श्री हनुमान की प्रीति हेतु बतलाता हूँ| तिल के तेल से हनुमानजी का अभिषेक करना चाहिए| रुद्र मंत्रों का जाप करें| सिन्दूर को तेल में मिलाकर उसका लेप हनुमानजी की प्रतिमा पर करें| पूजा के लिए जपा, अर्क तथा मन्दार माला का प्रयोग करें| नैवेद्य के लिये उड़द के बड़े-बड़े उपचार इस्तेमाल करें| पूजन अपनी श्रद्धा तथा शक्ति के अनुसार ही करें|

हनुमान के बारह नामों यथा- 1. हनुमान 2. अंजनीसुत 3. वायुपुत्र 4. महाबली 5.रामेष्ट 6. फाल्गुन 7. पिंगाक्ष 8. अमितविक्रम 9. अवधिक्रमण 10. सीताशोक विनाशक 11. लखनप्राणदाता एवं 12. दशग्रीवदर्पहा का जो प्रात: ठकर स्मरण करता है उसे कभी भी किसी प्रकार का कष्ट नहीं सताता है| उसे संसार में समस्त ऋद्धि-सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं| श्रावण मास के प्रत्येक शनिवार को इस प्रकार पूजन करने वाला वज्र-तुल्य शरीर का स्वामी होता है| वह बुद्धि और वैभव एवं धन-सम्पदा का मालिक होता है| उनके शत्र नष्ट होते हैं| सभी उसके घनिष्ट प्रेमी/मित्र बन जाते है| वह अति बलशाली व कीर्तिशाली भी बनता है|

हनुमान मंदिर में ध्यान-मग्न हो जो एक लाख बार हनुमत कवच का पाठ करता है वह अणिमा सहित अनेक सिद्धियाँ प्राप्त कर लेता है| उसके दर्शन मात्र से यक्ष, राक्षस, वेताल भाग छुटते हैं| शनिवार को पीपल-स्पर्श और उसका पूजन अवश्य करें| शेष दिनों में (सोमवार से शुक्रवार व रविवार, उससे दूर रहें| शनिवा को पीपल-स्पर्श से ऋद्धि-सिद्धि बढ़ती हैं| श्रावण मास में पीपल-स्पर्श पूरे महीने करना लाभप्रद रहता है|

फल:- इस दसवें अध्याय के पाठ-श्रवण से शनि व हनुमान देवताओं की कृपा प्राप्त होती है मनोरथ पूर्ण होते हैं|