शहद की लज्ज़त

एक राजा सुबह-सवेरे अपने घोड़े पर सवार हो कर गाँव-गाँव में होता हुआ दूर जंगल में चला गया| कई घंटे की सवारी करते-करते वह एक घने जंगल में इतनी दूर चला गया कि अब और आगे जाना सम्भव नहीं था| अपने घोड़े की लगाम थामे जब उसने इधर-उधर देखा तो वहां सामने एक शेर को आते देखकर भयभीत हो गया| वह अपने घोड़े से छलाँग लगाकर, नज़दीक के पेड़ पर चढ़कर उसकी एक टहनी पर बैठ गया| शेर भी उसी पेड़ के पास इस ताक में बैठ गया कि कब राजा नीचे उतरे और वह उसे खा जाये| यह भाँपकर राजा ने उस शाखा को जाँचा जिस पर वह बैठा था कि क्या वह उसका भार सहन कर सकती है? परन्तु जब उसने शाखा की लम्बाई देखी तो वह और घबरा गया क्योंकि जहाँ से वह शाखा निकलती है वहाँ एक सफ़ेद और एक काला चूहा शाखा को कुतर रहे हैं| डर के मारे राजा सोचने लगा कि अब मैं क्या करूँ? अब मैं बुरी तरह से फँस गया हूँ और निकलने का कोई रास्ता नहीं है|

सोचने लगा कि अगर नीचे उतारकर भागूँ तो शेर खाता है, अगर बैठा रहूँ तो चूहे टहनी काट रहे हैं, आख़िर नीचे गिरूँगा| फिर नीचे देखता है कि अगर टहनी टूट गयी और नीचे गिरा तो वहाँ की जगह पक्की है या कच्ची, तभी एक भयानक दृश देखकर वह काँप उठता है| शेर के पास ही एक अजगर (बड़ा साँप) अपना मुँह खोले बैठा है कि यह नीचे गिरे और मैं खाऊँ| बड़ा परेशान हुआ कि किसी तरह भी छुटकारा नहीं है, न बैठे रहने में और न नीचे उतरकर भाग निकलने में! जब वह टहनी को पकड़े इस सोच में डूबा हुआ था कि वह अपने आप को कैसे बचाये तो अचानक उसने देखा कि ऊपर एक शाखा पर लगे छत्ते से शहद टपक रहा है| वह उसे चाटने लग गया| शहद के आनन्द में वह ऐसा मस्त हो गया कि न शेर का डर रहा, न अजगर का और न ही चूहों का ख़याल रहा|

कुछ समय बाद चूहों ने टहनी को कुतर डाला| टहनी नीचे गिर गयी| शहद के आनन्द में मग्न राजा मारा गया|

अब इस कहानी में बादशाह कौन है? वह हम हैं! हम उम्र की दौलत लेकर यहाँ आये हैं| यह जो हमारा शरीर है किराये का मकान है और एक दिन इसे ख़ाली करना है| शेर काल है जो हमारी ओर देख रहा है यानी काल या धर्मराज के दूत पल-पल का हिसाब कर रहे हैं कि इसके इतने दिन, इतने घण्टे, इतने मिनट बाक़ी हैं| काला और सफ़ेद चूहा दिन और रात हैं, जो हमारे जीवन के पेड़ को काट रहे हैं|जो दिन आज चला गया, उसे कल नहीं आना है| बाक़ी रहा अजगर, वह चिता या क़ब्र है जो मुँह खोले देख रही है कि कब यह आये और कब इसको हड़प लूँ| इसलिए फ़रीद साहिब कहते हैं:

फरीदा गोर निमाणी सडु करे निघरिआ घरि आउ||
सरपर मैथै आवणा मरणहु ना हरिआहु||

क़ब्र कहती है कि तुझे जब आना है, मेरे पास ही आना है, फिर मरने का क्या डर? दुनिया के भोग-विलास शहद हैं, जिनमें हम इतने ग़लतान हुए बैठे हैं कि ऐसी ख़ौफ़नाक चीज़ों से घिरे होने पर भी नहीं डरते, बल्कि कहते हैं, ‘एह जग मिट्ठा, अगला किन डिट्ठा’|

सो हमें चाहिए कि इन्द्रियों के भोगों में खोये रहने की बजाय परमात्मा की खोज में लगें और मनुष्य-जन्म का पूरा फ़ायदा उठायें|

धंधै धावत जगु बाधिआ ना बूझै वीचारु||
जंमण मरणु विसारिआ मनमुख मुगधु गवारु|| (गुरु नानक जी)

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मन को वश