मेंढक और हंस

एक बार एक हंस एक समुद्र से उड़कर दूसरे समुद्र को जा रहा था| रास्ते में थककर एक कुएँ के किनारे बैठ गया| उस कुएँ में एक मेंढक था| उस मेंढक ने पूछा, “भाई! तुम कौन हो और कहाँ से आये हो?” हंस ने जवाब दिया कि मैं समुद्र के किनारे रहनेवाला एक पक्षी हूँ और मोती चुनकर खाता हूँ| तब मेंढक ने पूछा कि समुद्र कितना बड़ा है? हंस ने कहा कि बहुत बड़ा है| मेंढक ने थोड़ी दूर पीछे हटकर कहा कि इतना बड़ा होगा? उसने कहा, “नहीं, बहुत बड़ा|” मेंढक ने थोड़ा-सा चक्कर लगाकर पूछा, “इतना बड़ा?” हंस ने कहा कि नहीं, इससे भी बहुत बड़ा है| मेंढक सारे कुएँ का चक्कर लगाकर कहने लगा कि क्या इतना बड़ा है? हंस ने कहा कि समुद्र इससे भी कहीं बड़ा होता है| तब मेंढक बोला, “तू झूठा है, बेईमान है| इससे बड़ा हो ही नहीं सकता!”

जो बात हमारी समझ से बाहर होती है, उसको हम मानने के लिए तैयार नहीं होते| हम कहते हैं कि बतानेवाला झूठा है|

नानक से अखड़ीआ बिअंनि जिनी डिसंदो मा पिरी|| (गुरु अर्जुन देव)

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