कबीर साहिब द्वारा राजा की परीक्षा
कबीर साहिब जुलाहा थे| राजा बीर सिंह राजपूत उनका सेवक था| उसका उनके साथ बहुत प्यार था| जब कबीर साहिब उसके पास आते थे तो वह तख़्त छोड़ देता, कबीर साहिब को ऊपर बैठाता और आप नीचे बैठता| एक बार कबीर साहिब ने राजा को आज़माना चाहा| एक वेश्या थी जिसने अपना पेशा छोड़कर कबीर साहिब की शरण ले ली थी| एक तरफ़ उसको लिया, दूसरी तरफ़ सन्त रविदास जी को लिया, दोनों हाथों में शराब जैसे रंगदार पानी की बोतलें पकड़ लीं और काशी के बाज़ारों में घूमते हुए शब्द पढ़ते निकले| चूँकि हिन्दू और मुसलमान दोनों जातियाँ उनके विरुद्ध थीं, इसलिए शोर मच गया| लोग कहने लगे कि एक तरफ़ वेश्या और दूसरी ओर जूतियाँ गाँठनेवाला रविदास है, हाथों में शराब की बोतलें हैं! कबीर साहिब इसी तरह राज-दरबार में पहुँच गये| जब राजा ने कबीर साहिब को इस हालत में देखा तो अभाव आ गया, तख़्त से नहीं उठा| कबीर साहिब ने सोचा कि यह तो गिर गया है, अभी सँभाल लें, नहीं तो मुश्किल हो जायेगी| उन्होंने दोनों बोतलें पैरों पर उड़ेल लीं|
जब राजा ने यह देखा तो सोचने लगा कि शराबी कभी अपनी शराब नहीं गिराता, यह शराब नहीं, कोई और चीज़ है| तख़्त से उतरा और सन्त रविदास से पूछा, “महाराज! यह क्या कौतुक है?” उन्होंने कहा कि तू अन्धा है, तुझे पता ही नहीं| जगन्नाथ के मन्दिर में आग लग गयी है, कबीर साहिब उसे बुझा रहे हैं| राजा ने तारीख़ और वक़्त नोट कर लिया और इसका पता लगाने के लिए दो साँड़नी सवार भेजे| जब वे वहाँ पहुँचे और मालूम किया, तो लोगों ने कहा, “ठीक है, आग लगी थी और कबीर साहिब बुझा रहे थे|” राजा का विश्वास पक्का हो गया|
ऐसे मौक़े पर बड़े-बड़े अभ्यासी लोक-राज में बह जाते हैं| गुरु की कृपा से कोई-कोई प्रेमी ही ऐसी परीक्षा में खरा उतरता है| यह आसान बात नहीं|
जब आप नौ दरवाज़ों को छोड़कर ब्रह्म, पारब्रह्म में जायेंगे तो
आपको पता लग जायेगा कि गुरु क्या है और क्या देता है|… अगर
अन्दर जाकर देख लो तो यक़ीन पुख़्ता हो जायेगा| (महाराज सावन सिंह)