काला नूर

एक मिरासी ग़लती से मस्जिद में जा पहुँचा| वहाँ पाँच नमाज़ी मौजूद थे| उन्होंने कहा कि आओ, वुज़ू करके नमाज़ पढ़ें| मिरासी ने पूछा, “नमाज़ से क्या फ़ायदा होता है?” उन्होंने जवाब दिया कि नमाज़ पढ़ने से चेहरे पर ख़ुदा का नूर आता है| यह सुनकर मिरासी बोला, “बहुत अच्छा! अभी तो मुझे काम है, पर घर जाकर ज़रूर पढूँगा|” वे पाँचों नमाज़ में लग गये और वह घर आ गया|

जब रात के पिछले पहर में उठा तो सोचने लगा कि अगर वुज़ू किया तो नशा टूट जायेगा, क्योंकि उसे नशा करने की आदत थी| नमाज़ भी ज़रूर पढ़नी थी ताकि चेहरे पर ख़ुदा का नूर आ जाये, लेकिन बिना वुज़ू नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं होता| इसलिए उसने मिट्टी से वुज़ू करने का फैसला किया| यह सोचकर अँधेरे में ज़मीन पर हाथ मारकर मुँह पर फेरने लगा| रात को कहीं तवा नीचे उलटा पड़ा रह गया था| हाथ तवे पर जा लगा| बड़े प्रेम से उसने वुज़ू करके नमाज़ पढ़ी| जब दिन निकला तो मिरासिन से पूछने लगा, “देख! क्या मेरे चेहरे पर नूर आया है?” उसने कहा, “अगर नूर का रंग काला होता है, तो वह घटा बनकर आया है और अगर नूर गोरा होता है या उसका कोई और रंग होता है, तो जो पहले था वह भी जाता रहा है!”

यही हाल हमारा है| हम नाम लेकर कमाई तो करते नहीं, और कहते हैं कि रूह खण्डों-ब्राह्मण्डों पर चढ़ जाये|

जो नाम लेकर रख छोड़े, उसे फ़ायदा कुछ नहीं| जिस तरह
किसी कुम्हार को हीरा मिल गया, उसने गधे के गले में बाँध
दिया, क़द्र नहीं की| (महाराज सावन सिंह)

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धरती की