हज़रत! मैं कहाँ जाता?
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कहा जाता है कि निज़ामुद्दीन औलिया के बाईस शिष्य थे| हरएक चाहता था कि गद्दी उसे मिले| औलिया साहिब ने उनको परखना चाहा कि कौन सबसे योग्य और सच्चा शिष्य है| कहने लगे, आओ आज शहर की सैर को चलें और वहाँ की चहल-पहल देखें| वे बाज़ारों में घूमने लगे| जिसने देखा, कहने लगा कि आज पीर भी बाज़ारों में फिरता है और मुरीद भी| दो-एक बाज़ार पार करके वेश्याओं के बाज़ार में आ गये| लोगों ने कहा कि आज पीर मुरीदों सहित किस बाज़ार में घूम रहे हैं| आप एक वेश्या के दरवाज़े पर खड़े हो गये और अपने मुरीदों से कहा कि तुम डरो मत, यहाँ खड़े रहो, कोई न जाये, मुझे ऊपर कुछ काम है, मैं काम करके वापस आ जाऊँगा| यह कहकर कोठे पर चढ़ गये| कोठेवाली हाथ जोड़कर खड़ी हो गयी| कहने लगी, “मेरे धन्य भाग! आज मेरे घर महात्मा आये हैं| मैं तो ऐबों-पापों से भरी हूँ| कुछ हुक्म करो|” आपने कहा कि हमें रात यहाँ ठहरना है, हमें कोई अलग कमरा दे दो और तुम किसी और कमरे में आराम कर लो| अपने नौकर से कहो कि एक थाली में एक कटोरी दाल, दो-चार फुलके और एक बोतल शर्बत की ढककर ले आये| उसने कहा, “जी! सत्य बचन|” नौकर सब चीज़ें उसी तरह ढककर ले आया| शिष्यों ने कहा कि पीर की पीरी निकल गयी, अब शराब-कबाब उड़ेगा| हाथ पर हाथ मारकर पहले एक गया, फिर दूसरा, फिर तीसरा| इसी तरह इक्कीस चले गये, एक बाक़ी रह गया|
दाल-रोटी किसे खानी थी और शर्बत किसे पीना था, आपको तो अपने शिष्यों की परख करनी थी| जब सुबह हुई, नीचे उतरे| देखा कि सिर्फ़ अमीर ख़ुसरों खड़ा है| आपने पूछा, “बाक़ी कहाँ गये?” उसने कहा कि अमुक इस वक़्त चला गया, अमुक उस वक़्त चला गया, इसी तरह सब चले गये| पीर साहिब ने पूछा कि तू क्यों नहीं गया? वह बोला, “हज़रत! चला तो मैं भी जाता, लेकिन आपके सिवाय मुझे कोई जगह दिखायी नहीं दी, मैं कहाँ जाता?” आपने हँसकर उसे गले लगा लिया और गद्दी दे दी| सो फ़क़ीर देखते हैं कि कौन क़ाबिल है, कौन नहीं|
अगर सभी सेवक ऐसे बन जायें तो यह दुनिया स्वर्ग बन जाये|
तुझ बिनु अवरु न जाणा मेरे साहिबा गुण गावा नित तेरे|| (गुरु नानक देव जी)