Homeपरमार्थी साखियाँसन्त कबीर का घर

सन्त कबीर का घर

एक पण्डित बैलगाड़ी पर किताबें लादकर कबीर साहिब के साथ वाद-विवाद करने काशी में उनके घर गया| उस समय कबीर साहिब कहीं बाहर गये हुए थे| घर में उनकी धर्म-पुत्री कमाली थी| पण्डित ने पूछा, क्या कबीर साहिब का घर यही है? कमाली ने कहा कि यह कबीर साहिब का घर नहीं, उनका घर तो ब्रह्मा, विष्णु और शिव को भी नहीं मिला|

तूने कबीर साहिब को शरीर समझा है| वे शरीर नहीं हैं| तूने कबीर साहिब को समझा ही नहीं| सन्तों का सच्चा शरीर मनुष्य-देह नहीं होता| वे असल में शब्द-रूप होते हैं| वे इस संसार में नाम का उपदेश देने आते हैं और अपना कार्य पूरा करके वापस शब्द में ही विलीन हो जाते हैं|

अपनी बुद्धि के अहंकार और परमार्थ से कोरा होने के बावजूद वह कमाली की बात का असल भाव समझ गया| पण्डित ने कमाली का धन्यवाद किया और बैलगाड़ी पर लदी किताबों के साथ चुपचाप वापस चला गया| कबीर साहिब कहते हैं:

कबीर का घर सिखर पर, जहाँ सिलहिली गैल|
पाँव न टिकै पपीलि का, पंडित लादे बैल||

 

सतगुरु रब+इनसान है| वह परमात्मा के बोलने या प्रकट होने का
माध्यम है| उसके वचन प्रभु के वचन होते हैं, चाहे देखने में वे
इनसान के मुँह से निकलते प्रतीत होते हैं| (महाराज सावन सिंह)

FOLLOW US ON:
हज़रत! मै