यात्री और सांप – शिक्षाप्रद कथा
एक यात्री किसी गांव की सड़क पर जा रहा था| कड़ाके की ठंड पड़ रही थी| अचानक यात्री ने रास्ते में झाड़ियों के नीचे एक सांप सर्दी से ठिठुरा हुआ देखा| उसका पूरा शरीर ठंड से ऐंठ-सा गया था और वह करीब-करीब मरणासन्न हो रहा था|
यात्री दयावान था| उसने सांप को उठाकर अपनी कमीज की जेब में रख लिया, ताकि उसके शरीर की गर्मी से सांप का शरीर गरम हो जाए और उसे नया जीवन मिले|
कुछ देर तक तो सांप कमीज की जेब में बिना हिले-डुले पड़ा रहा| परंतु धीरे-धीरे उस यात्री के शरीर की गरमी पाकर वह सजीव और चंचल हो उठा और शीघ्र ही अपने असली रूप में आ गया|
सांप धीरे-धीरे कमीज की जेब से होकर यात्री के शरीर पर ऊपर की ओर सरकने लगा और इससे पहले कि बेचारा यात्री कुछ समझ पाता सांप ने यात्री के सीने में अपने जहरीले दांत गाड़ दिए|
यात्री चिल्ला उठा – “आह! निर्दयी सांप, क्या यही मेरी दया का पुरस्कार है? क्या मैं इसी योग्य था? तुम भी उन्हीं कृतघ्न प्राणियों में से हो, जिनसे यह पूरा संसार भरा हुआ है और मैं उन सीधे-सीधे लोगों में हूं, जिन्हें इस प्रकार के भलाई के कामों के लिए इस प्रकार जान से हाथ धोना पड़ता है|”
शिक्षा: निर्दयी से दया की आशा न करें|