वर्षादायी शंख (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
एक समय पृथ्वी पर लगातार बारह वर्षों तक भयंकर अकाल पड़ा| अकाल के समय न कहीं नभ पर बादल दिखाई दिए और न ही धरा पर कहीं हरियाली| सभी झीलें, तालाब, नदी, नाले सूख गए| समस्त सृष्टि में हाहाकार मच गया| प्राणी जल की बूंद-बूंद के लिए तरस गए तथा भूख से निष्प्राण हो तड़पने लगे| इंद्र देवता को प्रसन्न करने के लिए लोग तरह-तरह की प्रार्थना-अर्चना करते, मगर मेघ थे कि गायब ही हो गए| किसान अपनी सोने जैसी धरती के बंजर हो जाने के भय से हर समय प्रार्थना में लीन रहते| सूर्य अपने प्रकाश को जिसे अग्नि के रूप में धरती पर डाल रहा था, उससे समस्त जीव-जंतु अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगे| भयंकर गर्मी में एक किसान ने अचानक अपने खेतों में हल जोतना शुरू कर दिया|
संयोगवश शिव-पार्वती भ्रमण करते हुए वहां आ पहुंचे| कमजोर शरीरवाले उस किसान को बंजर धरती पर हल चलाते तथा पसीने से लथ-पथ हुए जब माता पार्वती ने देखा तो उनका हृदय पसीज गया| वह सोचने लगीं – ‘यह किसान बिना जल के धरती पर हल क्यों चला रहा है? जब तक अकाल की स्थिति है, हल चलाने का कोई औचित्य नहीं होगा|’ इसी सोच में डूबी माता पार्वती से शिव बोले – “पार्वती! क्या सोच रही हो?”
पार्वती बोलीं – “देव! पिछले कई वर्षों से अकाल पड़ा हुआ है| बिना बारिश के इस बंजर धरती पर कुछ भी तो नहीं उगेगा| फिर, इस किसान को क्या पड़ी है जो इस भयंकर गर्मी में धरती पर हल चला रहा है? इससे वह स्वयं भी परेशान हो रहा है तथा बेचारे भूखे-प्यासे बैल भी परेशानी में है| क्या इस किसान को लगता है कि वर्षा होगी?”
शिव बोले – “नहीं! इसे कोई पूर्वाभास नहीं है कि वर्षा होने वाली है| अकाल के बारह वर्ष का समय व्यतीत हो जाने से इसे इस बात का भी आभास है कि निकट भविष्य में वर्षा होने का कोई संकेत नहीं है|”
पार्वती ने शिव की बात काटते हुए कहा – “फिर यह व्यक्ति मूर्खता क्यों कर रहा है?”
माता पार्वती की शंका का समाधान करते हुए शिव बोले – “यह व्यक्ति मूर्ख नहीं है| इसे सब कुछ पता है, फिर भी यह हल इसलिए चला रहा है कि कहीं इस लंबे अकाल में निठल्ले बैठे रहने से वह हल चलाना ही न भूल जाए|”
शिव का उत्तर पाकर माता पार्वती उस किसान के कष्टों के निवारण का उपाय ढूंढनें लगीं| माता जानती थीं कि भगवान शिव जब भी अपना वर्षादायी शंख बजाते हैं तो वर्षा होने लगती है| उन्होंने शिव से कहा – “प्रभो! किसान यह सोचकर कि कहीं वह हल चलाना ही न भूल जाए, कितना कष्ट उठाकर हल चला रहा है| लेकिन आपने भी तो इतने वर्षों से अपना वर्षादायी शंख नहीं बजाया है, कहीं ऐसा न हो कि आप भी शंख बजाना भूल जाएं|”
“नहीं, पार्वती! ऐसा कैसे हो सकता है?” शिव तपाक से बोले – “मैं शंख बजाना भला कैसे भूल सकता हूं?”
पार्वती झट से बोलीं – “ऐसा क्यों नहीं हो सकता स्वामी? इतने वर्षों से आपने शंख नहीं बजाया| ऐसे में हो सकता है कि आप शंख बजाना ही भूल गए हों|”
“नहीं पार्वती! मुझे शंख बजाना आता है और अपना शंख बजाना न तो मैं भूला हूं और न ही भूल सकता हूं|” शिव ने पार्वती की शंका निवारण के प्रयास में कहा| मगर पार्वती अपनी जगह अडिग थीं| कहने लगीं – “प्रभो! यदि ऐसा नहीं है तो एक बार बजार क्यों नहीं देख लेते?”
पार्वती की बात सुनकर शिवजी को लगा कि वे संदेह में घिर गई हैं| संदेह निवारण करने के लिए उन्होंने तुरंत अपनी झोली से वर्षादायी शंख निकाला और पूरे वेग से उसे बजाने लगे| बस फिर क्या था| शंखनाद होते ही समूचे आकाश में मेघ घिर आए| काले रंग के घनघोर बादल आकाश में हों और बारिश न हो, ऐसा भला कैसे होता? शिव पूरे वेग से शंखनाद करते रहे और मेघ भी पूरे जोर से बरस पड़े| देखते-देखते मूसलाधार बारिश होने लगी| समूची धरती जलमग्न हो उठी| इतनी बारिश हुई कि सारी धरती की प्यास बुझ गई| किसान नाचने लगे| मानव ही क्या पशु-पक्षी भी शिवजी की इस कृपा से धन्य हो उठे| माता पार्वती इस समूचे संसार की प्रसन्नता से गद्गद हो उठीं| माता पार्वती, जो अपनी व्यवहार कुशलता के कारण पृथ्वीवासियों को संकट से बचाने के कारण ही ‘जगदंबा’ कहलाईं| वे शिवजी से मुस्कुराते हुए बोलीं – “स्वामी! आप तो सचमुच भोले-भंडारी हैं|”
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