तारकासुर का उत्पात (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
विवाह संपन्न होने के बाद शिव अपनी नवविवाहिता पत्नी पार्वती को साथ लेकर कैलाश पर्वत लौट आए| वहां नंदी ने पहले से ही तैयार कर रखी थी| शिव और पार्वती के सुहाग कक्ष को तरह-तरह के फूलों-लताओं और मालाओं से सजाया गया| यह देखकर पार्वती नंदी पर बहुत प्रसन्न हुई| उसी समय अन्य गणों के साथ भगवान शिव भी वहां आ गए| उन्होंने नंदी एवं सभी गणों को आदेश दिया – “हम विश्राम करने जा रहे हैं, तुम लोग किसी को भी कक्ष में प्रवेश मत करने देना ताकि हमारे विश्राम में बाधा उपस्थित हो|”
इतना कहकर शिव ने सुहाग कक्ष का द्वार बंद कर लिया| द्वार के बाहर नंदी पहरा देने लगा तथा अन्य गण भी बाहर विचरण करने लगे ताकि कोई व्यक्ति शिव एवं पार्वती के विश्राम में व्यवधान न डाल सके|
शिव के विवाह का समाचार पाकर असुरों का राजा तारकासुर प्रसन्न हो उठा| उसे प्रसन्नता इस बात से नहीं हुई कि शिव विवाह-बंधन में बंध गए हैं बल्कि इस बात से हुई कि शिव विश्राम में रत हैं और अब उसके उत्पातों को रोकनेवाला कोई नहीं है| अवसर का लाभ उठाते हुए तारकासुर ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया| वह ऋषि-मुनियों को परेशान करने लगा, यज्ञ में बाधा डालता, यहां तक कि हवन की सामग्रियों को भी फेंक देता| देवताओं को तरह-तरह से सताने में उसे आनंद आता था| देवता तारकासुर के उत्पातों से त्राहि-त्राहि कर उठे| तारकासुर ने देवराज इंद्र को पदच्युत करके इंद्र का सिंहासन छीन लेने का निश्चय किया| देवताओं को जब उसके इस निश्चय का पता चला तो वे चिंतित हो उठे| तारकासुर यदि देवराज बन जाएगा तो फिर देवताओं को उसका सेवक बनकर रहन पड़ेगा तथा तीनों लोकों में असुरों का आतंक व्याप्त हो जाएगा| इस स्थिति में धर्म का अंत सुनिश्चित है| इस भयावह स्थिति को देखकर देवता सृष्टि रचियता ब्रह्मा की शरण में पहुंचे| सभी ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की – “भगवान्! अब आप ही हमें बचा सकते हैं तथा धर्म की रक्षा कर सकते हैं|”
“तारकासुर के कुकृत्यों पर अंकुश लगा पाना मेरे भी वश की बात नहीं है| यदि यह कार्य कोई कर सकता है तो वे स्वयं शिव हैं| आप लोग उनके पास जाइए और उनसे प्रार्थना कीजिए|” ब्रह्मा जी ने देवताओं को परामर्श दिया|
सभी देवता शिव से मिलने चल पड़े| वे जब शिव के सुहाग कक्ष के पास पहुंचे तो नंदी ने उन्हें वापस जाने को कहा| तब देवताओं ने नंदी को तारकासुर के उत्पातों के बारे में बताते हुए कहा कि शिव को सूचना दो| हमारा उनसे मिलना अत्यंत आवश्यक है|
“देवगण! क्षमा करें, मैं यह नहीं कर सकता हूं| स्वयं शिव ने मुझे आदेश दिया है कि मैं किसी को उनके विश्राम में व्यवधान न डालने दूं| अत: मैं न तो उन्हें आप लोगों के बारे में सूचना दे सकता हूं और न मैं आप लोगों को उनसे मिलने दूंगा|”
देवताओं ने देखा कि नंदी तथा अन्य गण उन्हें किसी भी स्थिति में शिव से नहीं मिलने देंगे तो वे विष्णु के पास पहुंचे| विष्णु ने देवताओं को परामर्श दिया कि वे मिट्टी का पार्थिव लिंग तैयार कर पंचाक्षरी मंत्र का जाप और शिव का आवाहन करें|
देवताओं ने मिट्टी से पार्थिव लिंग तैयार किया और ‘हर-हर महादेव’ का उच्चारण करते हुए वे पंचाक्षरी मित्र का जाप करने लगे| देवताओं के जाप का स्तर शिव के सुहाग कक्ष तक पहुंचा| शिव ने जैसे ही अपने नाम का उच्चारण सुना, व्याकुल हो उठे|
शिव की व्याकुलता देख पार्वती ने पूछा – “प्रभो! क्या हुआ? आप अचानक व्याकुल क्यों हो उठे?”
भगवान शिव ने कहा – “मेरे भक्त मुझे बुला रहे हैं देवी!”
पार्वती ने पूछा – “कौन हैं ये भक्त? क्या अभी तत्काल जाना आवश्यक है?”
शिव ने कहा – “ये सभी भक्त देवगण हैं जो संभवत: किसी संकट से घिर गए हैं और इसीलिए पंचाक्षरी मंत्र का जाप करते हुए मेरा स्मरण कर रहे हैं| उन्हें मेरी सहायता की आवश्यकता है|”
“किंतु, मुझे भी आपकी आवश्यकता है| यदि आप मुझे सुहाग-शैया पर इस प्रकार छोड़कर चले जाएंगे तो यह मेरे प्रति अन्याय होगा| मैंने सुना है कि आप किसी के प्रति अन्याय नहीं करते|” पार्वती ने नारी सुलभ उठ करते हुए कहा|
पार्वती की बात सुनकर शिव सोच में पड़ गए| यह धर्म संकट की स्थिति थी| यदि मैं देवताओं के पास नहीं जाता हूं तो शरणागत की रक्षा न करने का दोषी बनूंगा और यदि पार्वती को छोड़कर जाता हूं तो पति धर्म से विमुख होने का| अंत में, शिव ने कुछ निश्चय किया और वे कक्ष से बाहर चले गए| देवताओं ने शिव को देखा तो वे प्रसन्न होकर शिव की ‘जय-जयकार’ कर उठे| शिव ने देव्तओंसे पूछा – ‘देवगण! बताइए, आप लोग मुझे क्यों पुकार रहे हैं?”
देवताओं ने शिव से प्रार्थना की – “प्रभो! तारकासुर के उत्पातों ने हमारा जीवन दूभर कर दिया है| कृपया आप चलकर उसका संहार करें|”
शिव असमर्थता व्यक्त करते हुए बोले – “मैं तो अभी आप लोगों के साथ नहीं चल सकता हूं| आप लोग ही कोई अन्य उपाय सोचें|”
यह सुनकर देवतागण सोच में पड़ गए| उन्होंने मन ही मन विष्णु को स्मरण किया| विष्णु में उन्हें समझाया कि यदि शिव स्वयं नहीं जा सकते हैं तो वे एक पुत्र की सृष्टि करें तथा उसे तारकासुर का वध करने के लिए भेज दें| देवताओं ने शिव से ऐसा ही निवेदन किया|
शिव भक्तों की बात भला क्यों टालते? उन्होंने तत्काल अपना वीर्य अग्निकुंड में छोड़ दिया| उस वीर्य से एक बालक का जन्म हुआ| ब्रह्मा ने स्वयं प्रकट होकर उस बालक की कुंडली बनाई तथा उस बालक का नामकरण किया – कुमार स्वामी| इसने कालांतर में असुरों का वध कर देवताओं को संकट से मुक्ति दिलाई|
जब देवी पार्वती को इस बात का पता चला कि शिव ने देवताओं के कहने पर अपना वीर्य अग्नि को अर्पित कर दिया है तो वे क्रोधित हो उठीं| उन्होंने देवताओं को शाप दे डाला – “हे अकर्मण्य देवताओं! आपने एक नव विवाहिता पत्नी की शैया से उसके पति को बुलाकर उससे वीर्य का दान मांगा है, अत: मैं आप सभी को शाप देती हूं कि आप कभी संतान सुख प्राप्त नहीं कर सकेंगे|”
देवी पार्वती के शाप से सभी देवता थर्रा उठे| उन्हें इस अनहोनी का अनुमान नहीं था| वे शिव से प्रार्थना करने लगे कि अब शिव देवी पार्वती के क्रोध को शांत करें और देवताओं को शाप से मुक्ति दिलाएं|
शिव ने देवताओं से कहा – “मैं इस संबंध में कुछ नहीं कर सकता| इसके लिए आपको देवी पार्वती की पूजा-अर्चना करके उन्हें प्रसन्न करना होगा| जब वे प्रसन्न होकर अपने शाप को वापस लेंगी तभी आप उनके शाप से मुक्त हो सकेंगे|”
देवताओं ने देवी पार्वती को प्रसन्न करने के लिए तप आंरभ कर दिया| अंततः देवी पार्वती देवताओं के सामने प्रकट हुई और देवताओं को क्षमा करते हुए उन्होंने कहा – “जब मुझे और शिव को संतान की प्राप्ति हो जाएगी तो आप लोग शाप से स्वत: मुक्त हो जाएंगे|”
इसके बाद समयानुसार शिव एवं पार्वती को इक्कीस पुत्रों की प्राप्ति हुई जो शिव के विभिन्न गण समूहों के गणाधिपति बने और इसके साथ ही देवताओं को भी शाप से मुक्ति मिली|
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