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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

एक बार नारद मुनि जी ने भगवान विष्णु जी से पुछा, हे भगवन आप का इस समय सब से प्रिया भगत कोन है?, अब विष्णु तो भगवान है, सो झट से समझ गये अपने भगत नराद मुनि की बात, ओर मुस्कुरा कर वोले ! मेरा सब से प्रिया भगत उस गांव का एक मामुली किसान है, यह सुन कर नारद मुनि जी थोडा निराश हुये, ओर फ़िर से एक प्रशन किया, हे भगवान आप का बडा भगत तो मै हुं, तो फ़िर सब से प्रिया क्यो नही?

किसी जंगल में एक शिकारी जा रहा था| रास्ते में घोड़े पर सवार एक राजकुमार उसको मिला| वह भी उसके साथ चल पड़ा| आगे उनको एक तपस्वी और साधु मिले|

एक बार की बात है एक जिज्ञासु साधक सच्चे आनंद की तलाश में एक महात्मा के पास गया| महात्मा जी से उसने बहुत आग्रह से प्रार्थना की कि वह सच्चे आनंद पर प्रकाश डालें| "सच्चा आनन्द" सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio Your browser does not support the audio element. महात्मा जी ने अपनी शांत, सहज मुस्कान से उस व्यक्ति की तरफ देखकर कहा- “आज तो मैं बहुत व्यस्त हूँ| आज तुम जाओ, दस

प्राचीन समय में राजा सुरथ नाम के राजा थे, राजा प्रजा की रक्षा में उदासीन रहने लगे थे, परिणाम स्वरूप पडौसी राजा ने उस पर चढाई कर दी, सुरथ की सेना भी शत्रु से मिल गयी थी, परिणामस्वरूप राजा सुरथ की हार हुयी, और वह जान बचाकर जंगल की तरफ़ भागा।

एक शहर में चार साधु आये| एक साधु शहर के चौराहे में जाकर बैठ गया, एक घण्टाघर में जाकर बैठ गया, एक कचहरी में जाकर बैठ गया और एक श्मशान में जाकर बैठ गया|

एक गरीब आदमी बेवजह घूमता हुआ एक कस्बे में पहुँचा| वह बहुत मरियल सा हो गया था क्योंकि कई दिनों से उसे खाने के लिये कुछ नहीं मिला था| उसे आशा थी कि कस्बे में उसे खाने के लिए कुछ-न-कुछ मिल ही जायेगा वरना भूख से उसकी मौत निश्चित थी|

जब पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों की शिक्षा पूर्ण हो गई तो उन्होंने द्रोणाचार्य को गुरु दक्षिणा देना चाहा। द्रोणाचार्य को द्रुपद के द्वारा किये गये अपने अपमान का स्मरण हो आया और उन्होंने राजकुमारों से कहा, “राजकुमारों! यदि तुम गुरुदक्षिणा देना ही चाहते हो तो पाञ्चाल नरेश द्रुपद को बन्दी बना कर मेरे समक्ष प्रस्तुत करो। यही तुम लोगों की गुरुदक्षिणा होगी।” गुरुदेव के इस प्रकार कहने पर समस्त राजकुमार अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र ले कर पाञ्चाल देश की ओर चले।

भगवान सूर्यदेव की पत्नी का नाम छाया था । उसकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ । यमुना अपने भाई यमराज से बडा स्नेह करती थी । वह उससे बराबर निवेदन करती है वह उसके घर आकर भोजन करें ।

विष्णु कांची में दामोदर नामक एक गरीब ब्राह्मण रहते थे| जब उनका विवाह हुआ, तब उन्होंने अपनी स्त्री से कह दिया कि देखो, अब मैं गृहस्थ बन गया हूँ| गृहस्थ का खास काम है-अतिथि-सत्कार करना|

एक बार की बात है कि वर्षाकाल आरम्भ होने पर अपना चातुर्मास्य करने के उद्देश्यय से मैंने किसी ग्राम के एक ब्राह्मण से स्थान देने का आग्रह किया था| उसने मेरी प्रार्थना को स्वीकार किया और मैं उस स्थान पर रहता हुआ अपनी व्रतोपसाना करता रहा|

एक समय था जब राजा-महाराजाओं को पक्षी पालने का शौक होता था| ऐसे ही एक राजा के पास कई सुंदर पक्षी थे| उनमें से एक चकोर राजा को अति प्रिय था और वह जहाँ भी जाता उसे जरुर साथ ले जाता था|

मद्र देश के राजा अश्वपति ने पत्नि सहित सन्तान के लिये सावित्री देवी का विधि पूर्वक व्रत तथा पूजन करके पुत्री होने पर वर प्राप्त किया । सर्वगुण देवी सावित्री ने पुत्री के रूप में अश्वपति के घर कन्या के रूप मे जन्म लिया ।

मुकुन्ददास नामक एक व्यक्ति किसी अच्छे सन्त का शिष्य था| वे सन्त जब भी उसको अपने पास आने के लिये कहते, वह यही कहता कि मेरे बिना मेरे स्त्री-पुत्र रह नहीं सकेंगे| वे सब मेरे ही सहारे बैठे हुए हैं| मेरे बिना उनका निर्वाह कैसे होगा? सन्त ने कहते कि भाई! यह तुम्हारा वहम है, ऐसी बात है नहीं|

पुराने समय में एक राजा के कोई सन्तान नही थी । राजा रानी सन्तान के न होने पर बडे दःखी थे एक दिन रानी ने गाज माता से प्रार्थना की कि अगर मेरे गर्भ रह जाये तो मैं तुम्हारे हलवे की कडाही करूँगी ।

सन्यासी के किसी राज्य में महिलारोप्य नाम का एक नगर था| उस नगर से थोड़ी दूर पर भगवान शंकर का एक मंदिर बना हुआ था| उस मठ में तामचूड़ का एक सन्यासी निवास करता था| नगर में भिक्षादन कर वह अपनी जीविका चलाया करता था| भोजन से बचे हुए अन्न को वह भिक्षापत्र में रखकर उस पात्र का खूटी पर लटका दिया करता था, इस प्रकार वह निश्चित होकर रात्री में सो जाया करता था प्रात:कल वह उस अन्न को उस मन्दिर में कार्यरत श्रमिको को दे दिया करता था|

एक बार राजा भोज अपने मंत्री के साथ घूमने निकले हुए थे| एक जगह उन्होंने देखा कि एक किसान ऊबड-खाबड़ जमीन पर गहरी नींद में सोया हुआ है|

एक राजकुमार था| उसके पाँच-सात मित्र घोड़ों पर घूम रहे थे| वहाँ बहुत-सी गूजर-स्त्रियाँ दूध, छाछ, दही आदि की बिक्री करने को जा रहीं थीं|

एक बार नंदकिशोर ने सनतकुमारों से कहा कि चौथ की चंद्रमा के दर्शन करने से श्रीकृष्ण पर जो लांछन लगा था, वह सिद्धि विनायक व्रत करने से ही दूर हुआ था। ऐसा सुनकर सनतकुमारों को आश्चर्य हुआ।

दक्षिण के किसी जनपद में महिलारोप्य नाम का एक नगर था| उस नर से कुछ दूरी पर एक बहुत बड़ा वटवृक्ष था, जिसके फल खाकर सभी पक्षी अपना पेट भरते थे और जिसके कोटरों में अनेक प्रकार के कीट निवास किया करते थे, जिसकी शीतल छाया में दूर-दूर से आने वाले पथिक विश्राम किया करते थे|

एक बार एक गुरु अपने आश्रम में शिष्यों को समझा रहे थे| तभी कहीं से घूमता हुआ एक चोर उधर से आ निकला| उसने सोचा- ‘चलो देखें गुरुजी अपने शिष्यों को क्या ज्ञान दे रहे हैं|’

आचार्य द्रोण राजकुमारों को धनुर्विद्या की विधिवत शिक्षा प्रदान करने लगे। उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे।

जैसे-जैसे होली का दिन समीप आ रहा था, कृष्ण की बेचैनी बढ़ती जा रही थी। इसी बीच उनका मन कई बार चाहा कि वे स्वयं रथ हाँकें और सुरक्षाकर्मियों, को चकमा दे कर तीव्र गति से ब्रजप्रदेश पहुँच जाएँ, परंतु नटवरलाल सुरक्षाकर्मियों के समक्ष जैसे विवश हो गए थे।

किसी नगर में एक महा विद्वान ब्राह्मण रहता था| विद्वान होने पर भी वह अपने पूर्वजन्म के कर्मों के फलस्वरूप चोरी किया करता था| एक बार उसने अपने नगर में ही बाहर से आए हुए चार ब्राह्मणों को देखा|

किसी नगर के छोर पर एक छोटी सी कुटिया में एक साधु रहता था| वह हमेशा ईश्वर की भक्ति में लीन रहता था| नगरवासी उसका बहुत आदर करते थे|

पाण्डवों को एकचक्रा नगरी में रहते कुछ काल व्यतीत हो गया तो एक दिन उनके यहाँ भ्रमण करता हुआ एक ब्राह्मण आया। पाण्डवों ने उसका यथोचित सत्कार करके पूछा, “देव! आपका आगमन कहाँ से हो रहा है?” ब्राह्मण ने उत्तर दिया, “मैं महाराज द्रुपद की नगरी पाञ्चाल से आ रहा हूँ। वहाँ पर द्रुपद की कन्या द्रौपदी के स्वयंवर के लिये अनेक देशों के राजा-महाराजा पधारे हुये हैं।” पाण्डवों ने प्रश्न किया, “हे ब्राह्मणोत्तम! द्रौपदी में क्या-क्या गुण तथा विशेषताएँ हैं?”

अपने आप को धर्म और भगवान से ऊँचा मानने वाला हिरण्यकश्यप नाम का एक राजा था । वह चाहता था कि सब लोग उसे ही भगवान मानें और उसकी पूजा करें । पर हिरण्यकश्यप के पुत्र ने उसे भगवान मानने से साफ इनकार कर दिया । बहुत यातना व अत्याचार के बाद भी वह वह स्वयंभू अपने पुत्र भक्त प्रह्लाद से अपने को भगवान कहलाने में असफल रहा । हार कर अन्त में उसने प्रह्लाद को जान से मारने का तरीका सोचा ।

किसी नगर में जीर्णधन नाम का एक वैश्य रहता था| कुछ ऐसा हुआ कि उसका सारा धन नष्ट हो गया और वह सर्वथा निर्धन हो गया| इससे जहां उसको कष्ट होता था वहां उसको ग्लानि भी होने लगी थी|

एक राजा के पास एक हाथी था, जिससे वह बहुत प्रेम करता था| सारी प्रजा का भी वह प्रिय था|

प्राचीन काल में अयोध्या में सगर नामक राजा राज्य करते थे, उनके केशिनी और सुमति नामक दो रानियां थीं,

मद्र देश के राजा अश्वपति ने पत्नि सहित सन्तान के लिये सावित्री देवी का विधि पूर्वक व्रत तथा पूजन करके पुत्री होने पर वर प्राप्त किया । सर्वगुण देवी सावित्री ने पुत्री के रूप में अश्वपति के घर कन्या के रूप मे जन्म लिया ।