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संजीवनी बूटी

संजीवनी बूटी

एक गरीब आदमी बेवजह घूमता हुआ एक कस्बे में पहुँचा| वह बहुत मरियल सा हो गया था क्योंकि कई दिनों से उसे खाने के लिये कुछ नहीं मिला था| उसे आशा थी कि कस्बे में उसे खाने के लिए कुछ-न-कुछ मिल ही जायेगा वरना भूख से उसकी मौत निश्चित थी|

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खाना कैसे मिले, यह सोचते-सोचते उसे एक स्कीम सूझी| उसने कस्बे में अफवाह फैला दी कि वह एक ऐसी बूटी के बारे में जानता है जो मरते हुए व्यक्ति को बचा सकती है|

केवल मैं ही जानता हूँ कि वह बूटी कहाँ उगती है|’ उसने एक धनी महाजन के कान में फुसफुसाकर कहा ‘अगर आप मुझे उसकी कीमत दें तो मैं आपको वह बूटी दिखा सकता हूँ|’

महाजन उसके झांसे में आ गया| ‘क्या कीमत है?’ उसने जल्दी से पूछा| ‘मुझे बढ़िया भोजन पेट भरकर खिलाना पड़ेगा’ गरीब व्यक्ति ने उत्तर दिया|

महाजन झटपट तैयार हो गया| आखिर इतनी कीमती चीज इतने सस्ते में उसके हाथ ही लग रही थी| वह गरीब व्यक्ति को अपने घर ले गया और नौकरों को कहा कि उसके मेहमान के लिए बढ़िया खाना बनाएँ|

गरीब आदमी ने भर पेट खाना खाया| जब उससे और नहीं खाया गया तो उसने पूछा कि क्या बचा हुआ खाना वह अपने साथ ले जा सकता है?

महाजन मरते आदमी को जिंदा रखने वाली बूटी प्राप्त करना चाहता था| वह बहुत उतावला हो रहा था| उसने कहा, ‘हाँ-हाँ, जो चाहे करो, परंतु मुझे वह बूटी जल्दी दिखाओं|’

उस गरीब आदमी ने जोर से डकार मारी और पेट पर हाथ फेरकर बोला, ‘वाह! मजा आ गया, फिर उसने महाजन से कहा, मेरे साथ चलो|’

उसने महाजन को कस्बे के बाहर कई मील तक चलाया| फिर एक खेत के पास जाकर रुक गया और बोला, ‘यह रही संजीवनी बूटी|’

‘लेकिन यह तो धान का खेत है, महाजन ने हैरान होकर कहा| तुम इन्हें संजीवनी बूटी कैसे बता रहे हो?’

‘हाँ सेठ जी| उस गरीब आदमी ने हँसकर कहा|’ ‘इन पौधों की उपज खिलाकर ही तो आपने मुझे मरने से बचाया|’

इतना कहते ही वह गरीब आदमी वहाँ से भाग गया, वरना उसकी पिटाई हुए बिना न रहती| शिक्षा- मनुष्य को किसी की झूठी बातों में नहीं आना चाहिए जब तक उसे परख न ले|

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