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क्रोध पहला शत्रु

क्रोध पहला शत्रु

एक समय था जब राजा-महाराजाओं को पक्षी पालने का शौक होता था| ऐसे ही एक राजा के पास कई सुंदर पक्षी थे| उनमें से एक चकोर राजा को अति प्रिय था और वह जहाँ भी जाता उसे जरुर साथ ले जाता था|

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एक दिन जब वह शिकार के लिये वन में गया तो रास्ता भटक गया| राजा का प्यास से गला सूखने लगा| वह पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगा| अचानक राजा की नजर दो चट्टानों के बीच से बूँद-बूँद रिसते पानी पर पड़ी| राजा ने एक प्याला निकाला और वहाँ रख दिया| थोड़ी देर में प्याला भर गया| जैसे ही राजा ने उस प्याले को पीने के लिये उठाया, चकोर ने पँख मारकर उसे गिरा दिया| राजा को चकोर पर बहुत क्रोध आया, परंतु फिर भी उसने उस प्याले को मारने के लिये दोबारा चट्टानों के पास रख दिया| जब पुनः राजा पानी पीने का प्रयास करने लगा तो चकोर ने उसे फिर से गिरा दिया|

अब तो राजा इतना आगबबूला हो गया कि उसने चकोर की गर्दन मरोड़ दी| चकोर देखते ही देखते मर गया| राजा प्यास से इतना व्याकुल था कि उसने फिर चट्टान की ओर देखा तो हैरान रह गया| जिन चट्टानों से पानी आ रहा था वहाँ एक मरा हुआ सांप पड़ा था और पानी सांप के मुहँ से छूकर आ रहा था| राजा डर से कांप उठा| तब उसे ख्याल आया कि चकोर उसे बचाने के लिए ही बार-बार पानी गिरा रहा था| राजा ने बहुत पश्चाताप किया| पर अब उसके हाथों मारा गया उसका प्रिय चकोर जीवित तो नहीं हो सकता था| कहने वाले ठीक ही कह गये हैं कि क्रोध यमराज के समान होता है, उसका फल भुगतना ही पड़ता है| क्रोध मनुष्य का पहला शत्रु है| दूसरे शत्रु तो बाहर से ही वार करते हैं, किंतु यह तो शरीर में रहते हुए ही देह का दहन करता है| जिस प्रकार लकड़ी में रहने वाली आग लकड़ी को भस्म कर देती है, उसी तरह क्रोध भी इंसान को भस्म कर देता है|

शिक्षा- क्रोध मनुष्य को स्वयं की गलती का एहसास कराता है| जिसका फल उसे भुगतना पड़ता है|