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मेंढ़क तथा सांड़ – शिक्षाप्रद कथा

मेंढ़क तथा सांड़ - शिक्षाप्रद कथा

यह किसी तालाब के किनारे की घटना है| एक मेंढ़क का बच्चा पहली बार पानी से बाहर आया| तालाब से कुछ दूर एक भीमकाय सांड़ घास चर रहा था| मेंढ़क के बच्चे ने तो कभी भी इतना भयानक एवं भीमकाय जानवर नहीं देखा था| बेचारा समझ नहीं पा रहा था कि वह है क्या?
वह उल्टे पैरों भय से कांपता हुआ घर आया| घर पहुंच कर अपनी मां से लिपट गया और हांफता-कांपता हुआ कहने लगा – “मां, मैंने अभी-अभी तालाब से बाहर एक बहुत बड़ा जानवर देखा है!”

“कैसा था देखने में वह जानवर?” मां ने बच्चे को गोद में झुलाते हुए पूछा|

“उसका वजन बताना तो मेरे लिए कठिन है, मगर समझ लो कि उसके चार पैर लम्बे-लम्बे थे| एक पूंछ थी, दो बड़ी-बड़ी आंखें| सिर से दो नुकीली भाले जैसी दो चीजें निकली पड़ रही थीं!” मेंढ़क का बच्चा बोला|

मेंढ़क की मां ने भी कभी तालाब से बाहर कदम नहीं रखा था, इसलिए वह भी ठीक से समझ नहीं पा रही थी कि आखिर वह कौन-सा जानवर हो सकता है? उसे यह सुनकर कुछ अपमान भी महसूस हुआ कि उसका बेटा उसके आकार को उससे भी बड़ा बता रहा है, जबकि वह अपने से बड़ा किसी को समझती ही नहीं थी| इसलिए उसने जोर से सांस खींची और अपना शरीर फुलाते हुए बोली – “क्या इतना बड़ा था, जितनी मैं हूं?”

“अरे नहीं मां, वह तो तुमसे बहुत अधिक बड़ा था!” मेंढ़क का बच्चा कांपते हुए चिल्लाया|

इस बार मेंढ़क की मां ने अपने फेफड़ों में ढेर-सी हवा भरी और आशा भरे स्वर में बोली – “अब देखो! क्या अब भी वह मुझसे बड़ा लगता था|?”

“नहीं मां, तुम तो उसके आगे कुछ भी नहीं हो!” मेंढ़क का बच्चा बोला|

अब तो उसकी मां के लिए यह बात एक चुनौती बन गई| वह अपने फेफड़ों में जबरदस्ती हवा भर कर फूलने का प्रयत्न करने लगी, मगर आखिर वह कितना फूलती| एक समय आया जब उसका पेट किसी गुब्बारे की भांति फट गया|

शिक्षा: घमंडी व्यक्ति का सिर सदैव नीचा होता है|

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सिंह और