Homeशिक्षाप्रद कथाएँमेल का फल – शिक्षाप्रद कथा

मेल का फल – शिक्षाप्रद कथा

मेल का फल - शिक्षाप्रद कथा

अपने देश में ऐसे बहुत-से नगर और गाँव हैं, जहाँ बहुत थोड़े पेड़ हैं| यदि वहाँ गाय-बैल भी कम हों और गोबर थोड़ा हो तो रसोई बनाने के लिये लकड़ी या उपले बड़ी कठिनाई से मिलते हैं|
एक छोटा-सा बाजार था| उसके आस-पास पेड़ कम थे और बाजार में किसानों के घर न होने से गाय-बैल भी थोड़े थे| जलाने के लिये लकड़ी और उपले वहाँ के लोगों को खरीदना पड़ता था| दो-तीन दिन वर्षा हुई थी, इसी से गाँवों से कोई मजदूर बाजार में लकड़ी या उपला बेचने नहीं आया था| इससे कई घरों में रसोई बनाने का ईंधन ही नहीं बचा था|

उस गाँव के दो लड़के, जो सगे भाई थे, अपने घर के लिये सूखी लकड़ी ढूंढने निकले| उनके पिता घर पर नहीं थे| उनकी माता बिना सूखी लकड़ी के कैसे रोटी बनाती और कैसे अपने लड़कों को खिलाती| दोनों लड़के अपने पिता के लगाये आम के पेड़ के नीचे गये| वहाँ उन्होंने देखा कि आम की एक मोटी सूखी डाल आँधी से टूटकर नीचे गिरी है|

बड़े लड़के ने कहा – ‘लकड़ी तो मिल गयी, लेकिन हम लोग इसे कैसे ले जायँगे?’

छोटे ने कहा – ‘हम इसे छोड़कर जायँगे तो कोई दूसरा उठा ले जायगा|’

लेकिन वे क्या करते| बड़ा भाई दस वर्ष का था और छोटा साढ़े आठ वर्ष का| इतनी बड़ी लकड़ी उनसे उठ नहीं सकती थी| इतने में छोटे लड़के ने देखा कि सूखी लकड़ी से गिरे एक मोटे बड़े सफेद कीड़े को, जो कि मर गया है, बहुत-सी चीटियाँ उठाये लिये जा रही हैं| छोटा लड़का चिल्लाया – ‘भैया! यह क्या है?’

बड़े ने कहा – ‘ये तो चीटियाँ कीड़े को ले जा रही हैं|’

छोटा भाई बोला – ‘इतनी छोटी चींटियाँ इतने बड़े कीड़े को कैसे ले जाती हैं?’

बड़े भाई ने कहा – ‘देखो तो कितनी चींटियाँ हैं| ये सब मिलकर इस कीड़े को ले जाती हैं| बहुत-सी चीटियाँ मिलकर तो मरे हुए साँप को भी घसीट ले जाती हैं|’

चींटियाँ कीड़े को धीरे-धीरे खिसका रही थीं| कीड़ा मोटा था| वह बार-बार लुढ़क पड़ता था| कभी-कभी दस-पाँच चींटियाँ उसके नीचे दब भी जाती थीं| लेकिन दूसरी चींटियाँ उस कीड़े को हिलाकर झट दबी चींटियों को निकाल देती थीं| काली-काली छोटी चींटियाँ थकने का नाम ही नहीं लेती थीं| लड़कों के देखते-देखते वे कीड़े को दूर तक धीरे-धीरे सरकाकर ले गयीं|

छोटा लड़का तो प्रसन्न हो गया| उसने ताली बजायी और कूदने लगा| फिर वह आमसे गिरी सूखी लकड़ी पर जाकर बैठ गया और बोला – ‘भैया! हमलोग क्या चींटियों से भी गये-बीते हैं| तू जाकर अपने मित्रों को बुला ला| मैं यहाँ बैठता हूँ| हम सब लड़के मिलकर लकड़ी उठा ले जायँगे|’

बड़ा लड़का बाजार में गया और अपने मित्रों को बुला लाया| बहुत-से लड़के लगे और उन्होंने उस भारी लकड़ी को लुढ़काया और ठेलना प्रारम्भ किया| सबने लगकर वह लकड़ी उन दोनों भाइयों के घर पहुँचा दी|

उन लड़कों की माता ने अपने पुत्रों के साथ आये लड़कों को मिठाई दी और कहा – ‘बच्चो! मेल में बहुत बल होता है| तुम लोग मिलकर कठिन-से-कठिन काम कर सकते हो और तुमलोग मिलकर रहोगे तो कोई भी तुम्हारी कोई हानि नहीं कर सकेगा| आपस में मिलकर रहने से तुम लोगों का मन भी प्रसन्न रहेगा और तुम्हारे काम भी सरलता से हो जाया करेंगे|

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