वृद्धावस्था का मूल्य
एक राजकुमार को वृद्धों से घृणा थी। वह कहा करता था, ‘बूढ़ों की बुद्धि कुंठित हो जाती है। वे सदा बेतुकी बातें किया करते हैं। वे किसी काम के नहीं होते।’ उसके दरबारी भी उसकी हां में हां मिलाते रहते थे। एक बार राजकुमार अपने कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने गया। युवराज का स्पष्ट निर्देश था कि किसी बुजुर्ग व्यक्ति को साथ न ले जाया जाए।
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राजकुमार ने जंगल में एक जगह पड़ाव डाला। सभी लोग शिविर में ठहरे। उन्हें आशा थी कि पास में ही कहीं पानी मिलेगा लेकिन बहुत ढूंढने पर भी कहीं पानी नहीं मिला। राजकुमार प्यास से व्याकुल हो गया। सैनिकों का भी गला सूख रहा था। समस्या का कोई हल न निकलता देख एक सैनिक ने कहा, ‘काश, कोई वृद्ध अभी हमारे साथ होता। वह जरूर कोई न कोई रास्ता निकालता।’ राजकुमार ने भी महसूस किया कि इससे कोई लाभ हो सकता है। उसने किसी बुजुर्ग को खोज लाने का आदेश दिया। तभी एक शिविर से एक युवक अपने वृद्ध पिता को लेकर सामने आया और बोला, ‘युवराज, घर पर मेरे पिता की सेवा करने वाला कोई नहीं था। इसलिए पितृभक्ति ने मुझे विवश किया कि मैं इन्हें अपने साथ लेकर चलूं। वैसे तो यह आपके आदेश का उल्लंघन था पर क्या करता और कोई रास्ता न था।’
यह कहकर उस युवक ने अपने पिता से निवेदन किया, ‘पिताजी कृपया हमारी समस्या का हल सुझाएं।’ वृद्ध ने कहा, ‘चरते हुए गधे जिस भूमि को सूंघें वहां थोड़ी ही गहराई पर पानी अवश्य मिलेगा।’ सैनिकों ने खोज की। जंगल में घास चरते हुए गधों को जहां की भूमि सूंघते हुए देखा, वहां की खुदाई की गई। खोदते ही जल निकला। लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। सब पानी पीकर तृप्त हुए। उस वृद्ध ने राजकुमार से कहा, ‘युवराज, क्षमा करें। हर आयु के व्यक्ति की अपनी भूमिका है। हर उम्र के लोग एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। किसी के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।’ राजकुमार लज्जित हो गया।