वैज्ञानिक रमन ने ज्ञान के बदले चरित्र को चुना
नो बेल पुरस्कार प्राप्त सर सीवी रमन भौतिक विज्ञान के प्रख्यात वैज्ञानिक थे। उन्हें अपने विभाग के लिए एक योग्य वैज्ञानिक की आवश्यकता थी। उन्होंने अखबारों में विज्ञापन प्रकाशित करवाया, जिसे पढ़कर उनके पास कई आवेदन आए। सर सीवी रमन ने उनमें से कुछ का चयन किया और उन्हें साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया।
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साक्षात्कार के लिए आए लोगों में एक नवयुवक था, जिसे रमन ने अस्वीकार कर दिया था। थोड़ी देर बाद जब साक्षात्कार समाप्त हो गया तो रमन ने गौर किया कि वह नवयुवक अब भी उनके कार्यालय के आसपास घूम रहा है। वे तत्काल उसके पास पहुंचे और नाराजगी जताते हुए बोले, जब मैंने तुम्हें अस्वीकार कर दिया है तब तुम यहां क्यों घूम रहे हो? यहां तुम्हें नौकरी नहीं मिलने वाली। जाओ, घर चले जाओ। तब उस युवक ने विनम्रता से कहा, ‘सर, आप नाराज न हों। मुझे यहां आने-जाने का जो किराया दिया गया, वह भूल से कुछ अधिक है।
इसलिए मैं यह अतिरिक्त राशि वापस लौटाने के लिए कार्यालय के लिपिक को खोज रहा हूं।’ सर रमन उसकी बात सुनकर विस्मित हुए। फिर कुछ सोचकर बोले मैंने तुम्हारा चयन कर लिया है, तुम चरित्रवान हो। भौतिकी के ज्ञान में तुम कुछ कमजोर हो, जिसे मैं तुम्हें पढ़ाकर दूर कर सकता हूं, किंतु चरित्रवान व्यक्ति पाना कठिन है।
वस्तुत: किसी भी नौकरी के लिए सर्वोपरि पात्रता ईमानदारी होती है जो कर्मनिष्ठा व समर्पण को जन्म देती है और यही संबंधित संस्थान की प्रगति के लिए जरूरी है। ज्ञान की कमी को अध्ययन से दूर किया जा सकता है किंतु चारित्रिक दुर्बलता संस्थान को हर प्रकार से हानि पहुंचाती है।