तूफान की त्रासदी में भी धैर्य नहीं खोया उर्मिला ने
यह सच्ची घटना ओडीसा की है। उर्मिला दास अपने छोटे से परिवार पति और दो बच्चों में प्रसन्न थी। वे निर्धन थे किंतु गुजारे लायक कमा लेते थे। कम साधनों में भी पर्याप्त संतुष्टि का भाव उस परिवार में था और इसीलिए वे आनंद से जीवन व्यतीत कर रहे थे। किंतु एक दिन ऐसा आया कि इस परिवार की खुशियों पर ग्रहण लग गया।
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ओडीसा में उन दिनों भयंकर तूफान आया, जिसने चारों ओर तबाही मचा दी। उर्मिला का गांव भी इस तूफान में नष्ट हो गया। अधिकांश लोग मारे गए। उर्मिला, उसके पति और बच्चे भी पानी की भीषण लहरों में बहने लगे। सभी एक-दूसरे को बचाने की चेष्टा में लगे थे, किंतु जल का आवेग अत्यंत प्रबल था।
उर्मिला ने जैसे-तैसे दोनों बच्चों को थाम लिया किंतु पति को न बचा पाई। तीन दिन तक वह और उसके बच्चे एक पेड़ पर बैठे रहे। फिर तूफान जब थमा तो उसके पास न पति था, न घर। कुछ दिन वह अपने साथ गुजरे हादसे के कारण असंतुलित रही किंतु फिर दोनों बच्चों का ख्याल कर पुन: उठ खड़ी हुई। उसने काम करना शुरू किया और बच्चों को स्कूल भेजने लगी। धीरे-धीरे उसने सब कुछ संभाल लिया। न केवल अपने परिवार का भला किया बल्कि जब गुजरात में भूकंप की सूचना उसे मिली तो उसने झोला उठाया, घर-घर जाकर मुट्ठीभर राशन का दान किया। इसके अलावा यथासंभव घायलों व बेघरों की सहायता की।
वस्तुत: किसी भी त्रासदी के प्रत्यक्षदर्शी के लिए मानसिक संतुलन रख पाना अत्यंत कठिन होता है, लेकिन जो ऐसे में भी धर्य रखते हुए अपने जीवन को पुन: सकारात्मकता की ओर मोड़ देते हैं, वे ही वास्तव में प्रेरणास्पद हैं।