सियार ओर सिंह
एक दिन एक भूखे सियार का एक सिहं से सामना हो गया| सिहं को देखकर सियार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई| उसने किसी तरह डरते-डरते कहा, ‘हे जंगल के राजा| मुझे अपनी शरण में ले लो| मैं आपकी हर आज्ञा मानूँगा|’
सिहं को उस पर दया आ गई| वह बोला, ‘ठीक है, चलो मेरे साथ रहो| अगर तुम मेरा कहना मानते रहे तो खाने-पीने की पूरी मौज रहेगी|’
‘आपका हुक्म सर माथे पर|’ सियार ने शीश नवाकर कहा|
‘अब मेरी बात ध्यान से सुनो| तुम्हें रोज़ पहाड़ की चोटी पर जाकर देखना होगा कि नीचे घाटी में कोई जानवर घूम-फिर रहा है या नही| और यदि कोई जानवर नज़र आए तो मुझे आकर बताओगे और कहोगे, ‘दमको पूरी शक्ति से हे सिहंराज| उसके बाद जब मैं जानवर को मारकर भरपेट भोजन कर लूँगा| तब बचा हुआ भाग तुम खाओगे|’
‘जैसी आपकी आज्ञा|’ सियार बोला|
अगले दिन सियार पहाड़ की चोटी की ओर चल दिया| उसकी निगाह एक हाथी पर जा पड़ी| वह सिहं के पास दौड़कर आया और दंडवत होकर बोला, ‘मैंने एक हाथी देखा है| दमको पूरी शक्ति से हे सिहंराज|’
सिहं ने हाथी का शिकार किया और भरपेट खाया और फिर उसके बाद सियार ने भी खाया| इसी तरह से दिन बीतते चले गए| सियार काफ़ी मोटा-तगड़ा हो गया, किंतु उसकी विनम्रता घटती गई| एक दिन वह सोचने लगा, ‘मैं जूठन से क्यों अपना पेट भरूँ, मैं भी तो चौपाया जीव हूँ| मैं खुद भी हाथियों और भैसों का शिकार कर सकता हूँ| आखिर सिंह को अपना सारा बल जादू के इस मंत्र ‘दमको पूरी शक्ति से हे सिहंराज|’ से ही तो मिलता है|
उसने सिंह से प्रार्थना की, ‘हुजूर! आपकी जूठन खाते हुए मुझे काफ़ी समय बीत गया है| अब मैं खुद शिकार करके हाथी खाना चाहता हूँ|’
सिहं कुछ देर तक सोचता रहा और फिर बोला, ‘यह तेरे बस का काम नही है| मैं जो शिकार करता हूँ उसे खाकर ही मस्त रह|’
‘नही स्वामी| कृपया मुझे एक बार मुझे मौका तो दीजिए| इस बार मैं यहाँ रुकूँगा और आप पहाड़ की छोटी पर जाएँगे और जब आपको कोई हाथी दिखाई दे तब आकर मुझसे कहिए, ‘दमको पूरी शक्ति से हे सियार| मैं ज़रूर उसका शिकार कर लूँगा|’
सिहं ने काफ़ी समझाया किंतु सियार नही माना| आखिरकार सिंह राजी हो गया|
कुछ देर बाद सिंह वापस आया, ‘मुझे अभी-अभी एक हाथी इधर आता दिखाई दिया है| दमको पूरी शक्ति से हे सियार|’
सियार फुर्ती से चल दिया और हाथी के सामने जा पहुँचा| ‘अभी इसकी गर्दन दबाकर इसका काम तमाम करता हूँ|’ यह सोचकर उसने हाथी पर छलाँग लगा दी|
किंतु वह चूक गया| मदमस्त हाथी उसे रौंदता हुआ आगे बढ़ गया|
इस तरह वह मूर्ख सियार अपने प्राणों से हाथ धो बैठा|
शिक्षा: कुछ करने से पहले अपनी शक्ति व सामर्थ्य को परख लेना चाहिए| कोई भी ऐसा काम नही करना चाहिए जो प्रकृति विरुद्ध हो| जैसे सियार का यह सोचना कि वह हाथी को मार डालेगा| इसमें अपनी ही हानि है| जिसका काम उसी को साजै, और करे तो मूर्ख बाजै|