Homeशिक्षाप्रद कथाएँसियार और सम्मोहन मंत्र

सियार और सम्मोहन मंत्र

बात काफ़ी पुरानी है…गणेशपुर नरेश ब्रहमदत का राजपंडित एक बार वन में एकांत स्थान पर कोई गुप्त मंत्र जप रहा था| तभी वहीं पास लेटे एक सियार के कान खड़े हो गए, वह भी ध्यान से सुनने लगा| कुछ देर बाद राजपंडित खड़ा हुआ और बोला, ‘बस, मुझे मंत्र सिद्ध हो गया|

तभी सियार को सामने देखकर उसे आश्चर्य हुआ|

‘हा…हा…हा| अरे मूर्ख, मैंने तुझसे भी अधिक इस मंत्र पर अधिकार पा लिया है|’ इतना कहने के बाद सियार वहाँ से भाग छूटा|

‘इसे तुरंत पकड़ना चाहिए वरना यह मंत्र के द्वारा अनर्थ कर डालेगा|’ यह सोचकर राजपंडित उसके पीछे भागा|

लेकिन सियार बियावान जंगल में जा पहुँचा और ख्वाब देखने लगा, पहले मैं शादी करुँगा और फिर मंत्र के बूते पर जंगल के सारे चौपायों को अपने अधीन कर लूँगा|

जल्दी ही उसे सियारिन मिल गई| उसने उसे लालच दिया कि ‘यदि तुम मुझसे विवाह कर लो तुम जंगल के सारे जानवरों की महारानी बन जाओगी|’

सियारिन ने सियार की बात मान ली|

उसके बाद सियार ने मंत्र का पाठ किया| देखते-ही-देखते सारे जानवर उसके पास खींचे चले आए|

‘आप हमारे मालिक हैं महाबली|’ सिंह ने कहा|

‘आज से आप हमारे राजा हैं|’ चीते ने कहा|

जंगल के सभी जानवरों ने आपस में सलाह-मशवरा करके सियार और उसकी पत्नी को एक सिंह पर बैठाया जो दो हाथियों की पीठ पर खड़ा था| उसके बाद जंगल के जानवरों ने सियारिन को सम्मानित किया|

इतना सब कुछ होने पर सियार का दिमाग सातवें आसमान पर जा पहुँचा, बोला, ‘मेरे प्रजाजनो, आओ हम गणेशपुर पर धावा बोलते हैं|’

फिर पशुओं का विशाल समूह लेकर वह गणेशपुर जा पहुँचा| वहाँ सियार ने राजा को संदेश भिजवा दिया|

जब राजा को संदेश मिला तो राजपंडित भी वहाँ मौजूद था|

‘वह कहता है कि यह नगर मेरे हवाले करो वरना युद्ध करने के लिए तैयार हो जाओ|’ राजपंडित को संदेश-पत्र दिखाते हुए राजा ने पूछा, ‘आखिर यह पशु है कौन?’

‘वही सियार है, जो जंगल का राजा बन गया हे| उसे मुझ पर छोड़ दो| मैं उसे हराने की कोई जुगत लगाऊँगा|’ राजपंडित ने कहा|

‘बहुत अच्छा| ईश्वर तुम्हें सफलता दे|’ राजा ने कहा|

राजपंडित बाहर आ गया| उसने सोचा, पहले मुझे यह पता लगाना चाहिए कि उसका इरादा क्या है| वह सियार के पास जाकर बोला, ‘हे सर्वदाता, तुम इस नगर पर अधिकार किस प्रकार करोगे?’

‘मैं सिहों को गर्जना करने को कहूँगा, जिससे लोगों में भगदड़ मच जाएगी| फिर मैं शान से नगर में प्रवेश करुँगा|’ सियार ने गर्व भरे स्वर में कहा|

‘हूँ…तो यह बात है| असंभव, ये कुलीन पशु एक मामूली-से सियार की आज्ञा का पालन कभी नही करेंगे|’ राजपंडित ने कहा|

‘यह तो तुम सोचते हो| तुम देखना- सिंह मेरा आदेश मानेंगे| यहाँ तक कि यह सिहं भी जिस पर मैं बैठा हूँ, मेरे आदेश पर दहाड़ेगा|’ सियार बोला|

‘बड़े बोल न बोलो| पहले इसे गर्जना करवाकर दिखाओ| तब तुम्हें मान जाऊँगा|’

सियार ने गर्वित स्वर में कहा, ‘अपने राजा की आज्ञा का पालन करो| पूरे ज़ोर-शोर से गर्जना करो|’

फिर जब सिहं ने दहाड़ना शुरु किया तो हाथियों ने डरकर सिहं को पीठ से गिरा दिया| साथ में सियार और सियारिन भी धम्म से धरती पर जा गिरे| हाथियों को भागते देख जानवरों में भगदड़ मच गई| वे इधर-उधर भागने लगे| सियार इसी भगदड़ में हाथी के पैरों तले कुचलकर मारा गया| इस प्रकार गणेशपुर पर विजय प्राप्त करने का स्वप्न देखने वाले का अंत हो गया|

शिक्षा: वास्तविकता को समझ कर उससे समझौता कर लेने में ही भलाई है| ज़रुरी नही कि जो चीज़ किसी के लिए लाभकारी है, दूसरे के लिए भी हो| लेकिन इसी भ्रम में पड़ा हुआ था सियार| नतीजे में उसे अपनी जान गँवानी पड़ी| बड़े बोल बोलना घाटे का सौदा है|