सिर्फ़ एक चने के लिए
बहुत समय पहले की बात है- एक राजा ने अपनी सेना सहित किसी नगर के बाहर पड़ाव डाला| वहाँ पेड़ पर बैठा एक बंदर गौर से उनकी तमाम गतिविधियाँ देख रहा था|
‘मैं कई दिनों से भूखा हूँ किंतु लगता है कि अब मुझे भरपेट खाने को मिलेगा|’ यह सोचकर वह मन-ही-मन हर्षित हुआ|
थोड़ी देर बाद एक सिपाही दूसरे सिपाही से बोला, ‘चलो, घोड़ों के लिए कुछ चने भून लें|’
‘हाँ, मेरा भी यही विचार था|’ दूसरे सिपाही ने ‘हाँ’ में ‘हाँ’ मिलाई|
फिर सिपाहियों ने चने भूनकर ठंडे होने के लिए एक बड़े कड़ाह में डाल दिए और दूसरे काम में लग गए| उधर बंदर ने सोचा कि यही सुनहरा अवसर है, वह पेड़ से नीचे उतरा और कड़ाह में से मुट्ठी भर-भरकर चने खाने लगा|
उसने भरपेट चने खाए जिससे उसकी भूख तो मिट गई, किंतु लोभवश उसने कुछ चने मुहँ में भरे, कुछ दोनें हाथों में भर लिए और पेड़ पर चढ़ गया|
तभी उसके हाथ से एक चना छूट गया और ज़मीन पर जा गिरा|
‘अरे! मेरा चना?’ वह रुआँसा हो गया और बिना सोचे-विचारे ही उसने दोनों हाथों के सारे चने फेंक दिए और नीचे गिरे सिर्फ़ एक चने की तलाश में पेड़ से नीचे उतर आया और इधर-उधर तलाश करने लगा, ‘यहीं कहीं होना चाहिए| आखिर गया तो कहाँ गया? कहीं भी तो दिखाई नही दे रहा| हाय! मैं बाकी सारे चने भी गँवा बैठा|’
इस प्रकार वह मूर्ख बंदर एक चने के लोभ में पड़कर सारे चनों से हाथ धो बैठा|
शिक्षा: जो मिल जाए उसी में संतोष कर लेने में सुख है| बंदर स्वभाव से लालची था, इसीलिए नीचे गिरे एक चने का भी लोभ संवरण न कर सका और हाथ में थामे हुए चने भी गँवा बैठा| लालच का फल सदैव हानिकारक होता है|