सिद्धि

सिद्धि

19वीं शताब्दी के भारतीय संतो, सुधारकों और चिन्तकों में स्वामी रामतीर्थ की गिनती की जाती है| उन्हें ‘बादशाह राम’ के नाम से उनके समय की जनता पुकारती थी| वह एक बार देशाटन करते हुए ऋषिकेश पहुँचे|

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उन दिनों मुनि की रेती से स्वर्गाश्रम आने-जाने के लिए नौकाओं की व्यवस्था की| उन दिनों उन नौकाओं के मल्लाह गंगापार करने का एक और की उतराई का एक पैसा वसूल करते थे|

एक पैसा जाने का और एक ही पैसा ही लौटने का| मुनि की रेती पर गंगा के किनारे स्वामी रामतीर्थ नौका की प्रतीक्षा कर रहे थे कि एक कथित पहुँचे हुए साधु उनके पास पहुँचे बोले- “बादशाह राम!  हमने तो सुना था तुम बड़े सिद्ध हो गए हो| तुम क्या अपनी सिद्धि के बल पर गंगा भी पार नहीं कर सकते? मुझे तो कोई जानता तक नहीं, परंतु मुझे इतनी सिद्धि मिल गई कि गंगा लांघ सकता हूँ|”

स्वामी रामतीर्थ मुस्कुरा उठे बोले- “महाराज, यह जानकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि आप अपनी सिद्धियों के बल पर गंगा आर-पार लांघ सकते हैं| क्या आप बताएँगे इतनी सिद्धि प्राप्त करने के लिए आपने कितने वर्षों तक निरंतर साधना की है?” उन सिद्ध साधु ने तुरंत उत्तर दिया- “कि तीस वर्षों तक|” तब स्वामी रामतीर्थ मुस्कुराकर बोले- “लगातार तीस वर्षों की साधना का इतना छोटा-सा फल मिला? तुमने गंगा पार करने का एक पैसा जाने का और एक पैसा लौटने का, कुल दो पैसे बचाए| यही साधना तुम किसी ऊँचे लक्ष्य की प्राप्ति के लिए करते तो कम समय में तुम्हें कही बड़ी उपलब्धि हो जाती| इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की अगर आदमी साधना में समय लगाये तो किसी ऊँचे काम के लिए लगाये|