शरारती मेमना
एक बकरी का छोटा सा मेमना (बच्चा) बहुत ही शरारती था| उसकी माँ दिनभर उसके आगे-पीछे भगती रहती और उसे शरारतें करने को मना करती| लेकिन वह अपनी माँ का कहना नही मानता था|
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एक सुबह मेमना अपनी माँ का दूध पीकर कुछ दूर की ही सोचने लगा| उसने सोचा कि आज जंगल की सैर की जाए जबकि उसकी माँ उसे जंगल के भीतर जाने को मना करती थी|
कुछ देर तो वह अपनी माँ के अगल-बगल ही खेलता रहा| फिर माँ से नज़र बचाकर जंगल की तरफ़ भाग निकला| जब बकरी ने देखा कि उसका मेमना जंगल की तरफ़ जा रहा है तो उसने पीछे से आवाज़ लगाई, ‘जंगल मत जाओ, वहाँ खतरनाक जानवर होते है|’
माँ तुम चिंता मत करो, मैं जंगल के अंदर नही जाऊँगा और जल्दी ही लौट आऊँगा|’ मेमना लापरवाही से जवाब देता हुआ आगे बढ़ गया और दौड़ता हुआ जंगल में पहुँच गया| खूब उछला-कूदा और फुदकता रहा| जब खेलते-खेलते उसे माँ की याद आई तो उसने सोचा कि अब वापस चलना चाहिए| लेकिन जंगल में अंदर तक आ जाने के कारण वह रास्ता भटक गया|
वह काफ़ी देर तक रास्ते की खोज में इधर-उधर भटकता रहा किन्तु रास्ता न मिला| वह रोते-रोते सोचने लगा कि काश! वह अपनी माँ का कहना मान लेता| तभी वहाँ एक भेड़िया आया और मेमने को देखकर बोला, ‘वाह! आज तो बहुत ही मज़ेदार भोजन नसीब हुआ है|’
इसके बाद वह भेड़िया मेमने पर टूट पड़ा| इस प्रकार मेमने को बड़ों का कहना न मानने की सज़ा मिल गई|
कथा-सार
बड़े-बुजुर्गों के कहे पर कान न देना ठीक नही| उनकी कही बातों के पीछे जीवनभर के अनुभव का सार होता है| मेमना यदि अपनी माँ की बात मानकर जंगल के भीतर न जाता तो उसे भेड़िए का आहार न बनना पड़ता|