श्राप

एक गाँव में एक बुढ़िया अपनी पुत्री के साथ रहती थी| उनके पास एक बैल भी था| जहाँ बुढ़िया मेहनती और कर्तव्यनिष्ठ थी, वहीं उसकी पुत्री बेहद आलसी और कामचोर प्रवृति की थी|

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बुढ़िया अपने बैल का बहुत ख्याल रखती थी| एक दिन वह किसी कम में व्यस्त थी| तभी उसे ध्यान आया कि बैल प्यासा है लेकिन वह अपना काम अधूरा छोड़कर बैल को पानी पिलाने तालाब तक नही ले जा सकती थी| उसने अपनी पुत्री से बैल को पानी पिला लाने को कहा| किन्तु उसने मना कर दिया|

बुढ़िया ने अपनी पुत्री को लालच देते हुए कहा, ‘बेटी, मैं अपना काम बीच में नही छोड़ सकती| तुम बैल को तालाब से पानी पिला लाओ| वापस आने पर मैं तुम्हें हलुआ खिलाऊँगी|’

हलुए के लालच में उसकी बेटी बैल को पानी पिलाने ले जाने को तैयार हो गई| तालाब उसके घर से कुछ ही दूरी पर था| तपती दोपहरी में उसका मन तो नही चाह रहा था लेकिन हलुए के लालच में वह बैल को लेकर चल दी| कुछ दूर चलने के बाद उसने सोचा कि बैल को आधे रास्ते से ही वापस ले चलती हूँ| माँ से कह दूँगी कि उसने बैल को पानी पिला दिया है|

वह वापस अपने घर चल दी| घर आने पर माँ ने उसे हलुआ खाने को दिया| वह हलुआ खाने लगी पर बैल बेचारा प्यासा ही तड़पता रहा| गुस्से में आकर बैल ने उस लड़की को श्राप दे दिया, ‘जिस तरह आज तूने मुझे पानी के लिए तरसाया है, उसी तरह अगले जन्म में तू चातक पक्षी बन कर हमेशा पानी को तरसती रहेगी|’

और आज तक चातक पक्षी तालाब होने के बावजूद आसमान की ओर देखता बरसात का इंतजार करता रहता है|


कथा-सार

दूसरों को दुख पहुँचाकर अपने सुख की कल्पना करना ठीक नही| ऐसे सुख का उपभोग अधिक समय तक नही हो पाता| हलुए के लोभ में जिह्वा-सुख को आतुर लड़की के साथ भी ऐसा ही हुआ, जो बैल को प्यासा ही लौटा लाई| लेकिन आनेवाले जन्म में स्वयं पानी की बूंद को तरस गई|

कुरु का