शांति का मार्ग
एक व्यापारी था| उसने व्यापार में खूब कमाई की| बड़े-बड़े मकान बनाए, नौकर-चाकर रखे, लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि उसके दिन फिर गए| व्यापार में घाटा आया और वह एक-एक पैसे के लिए मोहताज हो गया| जब उसकी परेशानी सहन से बाहर हो गई, तब वह एक साधु के पास गया और रोते हुए बोला – “महाराज, मुझे कोई रास्ता बताइए, जिससे मुझे शांति मिले|”
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साधु ने पूछा – “तुम्हारा सब कुछ चला गया?”
व्यापारी ने कहा – “जी हां|”
साधु बोले – “तुम्हारा था तो उसे तुम्हारे पास रहना चाहिए था! वह चला कैसे गया?”
व्यापारी चुप हो गया|
“जन्म के समय तुम अपने साथ कितना धन लाए थे?”
“स्वामीजी, जन्म के समय तो सब खाली हाथ आते हैं|”
साधु बोले – “ठीक है, अब यह बताओ कि मरते समय अपने साथ कितना ले जाना चाहते हो?”
“मरते समय साथ कौन ले जाता है, जो मैं ले जाऊंगा|”
साधु बोले – “जब तुम खाली हाथ आए थे और खाली हाथ जाओगे तो फिर चिंता किस बात की करते हो?”
व्यापारी ने कहा – “महाराज, जब तक मौत नहीं आती, तब तक मेरी और मेरे घर वालों की गुजर-बसर कैसे होगी?”
साधु हंस पड़े – “जो धन के भरोसे रहेगा, उसका यही हाल होगा| तुम्हारे हाथ-पैर तो हैं, उन्हें काम में लाओ| पुरुषार्थ सबसे बड़ा धन है| ईश्वर पर भरोसा रखो| शांति का यही एक मात्र रास्ता है| व्यापारी की आंखें खुल गईं| उसका मन शांत हो गया| जाने कितने वर्षों के बाद पहली बार रात को उसे चैन की नींद आई और उसके शेष वर्ष बड़े आनंद में बीते|”