सेवक की सजा (बादशाह अकबर और बीरबल)
राजदरबार के एक सेवक से कुछ लापरवाही हो गई, जिसे देखकर बादशाह अकबर बिगड़ गए और उसे आदेश दिया-“जाओ बाजार से एक सेर चूना लेकर आओ और उसे मेरे सामने खाओ|”
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सेवक घबरा गया| बादशाह अकबर का आदेश था – न मानता तो आदेश के अवहेलना की सजा मिलती और मानता तो चूना खाने के कारण जो हालत होगी उसका तो भगवान ही मालिक होगा| उसने बीरबल से सलाह लेना उचित समझा| बीरबल को जब सारी बात पता चली तो उसने सेवक से कहा – “बाजार जाकर तुम एक-चौथाई मक्खन लेना और तीन-चौथाई सेर चूना| जब बादशाह सलामत इसे खाने को कहें तो मक्खन वाला हिस्सा पहले खाना, मुझे यकीन है तुम्हें कुछ नहीं होगा|”
सेवक ने बीरबल के कहे अनुसार ही तीन-चौथाई सेर चूना और एक-चौथाई मक्खन लिया और उसे थाली में रखकर बादशाह अकबर के सामने उपस्थित हो गया|
“अब इसे खाओ|” अकबर ने हुक्म दिया|
सेवक मक्खन वाला हिस्सा खाने लगा| बादशाह ने देखा तो वह हैरान रह गए कि सेवक आराम से चूना खा रहा है| उनके मन में दया के भाव उपज रहे थे| उन्हें लगा कि सेवक उनके आदेश के कारण ही ऐसा कर रहा है| अत: उसका अहित न हो, इसलिए बादशाह अकबर ने उसे शेष चूना खाने से रोक दिया और सेवक को माफ कर दिया|
बाद में जब उन्हें पता चला कि वास्तव में वह सेवक बीरबल के कारण ही बचा है और उसी के कहने पर चूने के स्थान पर मक्खन खा रहा था, तो बीरबल की चतुराई पर मुस्करा दिए बादशाह अकबर|