सेवक का प्रतिशोध
वर्धमान नगर में आभूषणों का एक व्यापारी दंतिल सेठ रहता था| वहाँ का राजा उसके व्यवहार से काफ़ी प्रसन्न था| जिस रानी को कभी कोई आभूषण बनवाना होता था तो दंतिल सेठ को ही बुलाया जाता| उसे रनिवास में आने-जाने की खुली छूट थी|
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एक बार सेठ ने अपनी कन्या के विवाह के अवसर पर नगर के सभी प्रतिष्ठित लोगों के साथ-साथ राजपरिवार के सदस्यों और राजकर्मचारियों को भी बुलाया| दंतिल सेठ ने खाने-पीने के बाद सभी आमंत्रित और सम्मानित अतिथियों को बहुमूल्य उपहार दिए|
गोरम्भ नाम का एक नौकर भी रानियों के साथ आया था| दंतिल सेठ के सामने ही उसके सेवकों ने किसी बात पर गोरम्भ को वहाँ से बाहर निकाल दिया| गोरम्भ दुखी मन से घर लौट आया| वह मन-ही-मन दंतिल सेठ से बदला लेने का निश्चय कर उपयुक्त समय की प्रतीक्षा करने लगा|
एक दिन प्रातःकाल गोरम्भ ने राजा को अर्धनिंद्रा की अवस्था में देखा तो बड़बड़ाते हुए बोला, ‘द्न्तिल सेठ का यह दुस्साहस कि रानी का आलिंगन करे| राम-राम! क्या ज़माना आ गया है? जिस थाली में खाना उसी में छेद करना|’
‘गोरम्भ यह क्या बक रहे है तू? क्या सचमुच द्न्तिल रानी का आलिंगन करता है?’ राजा ने सचेत होकर पूछा|
‘महाराज! मैंने तो ऐसा कुछ नही कहा| क्या मेरे मुहँ से ऐसा कुछ निकला है?’ गोरम्भ ने भयभीत होने का अभिनय करते हुए कहा|
राजा ने सोचा, लगता है गोरम्भ के मुहँ से सत्य निकल गया लेकिन अब भयवश सत्य को छिपा रहा है| इसके बाद राजा अपनी रानी पर संदेह करने लगा और उसने दंतिल सेठ के रनिवास में निर्बाध प्रवेश के अपने आदेश को वापस ले लिया|
दंतिल सेठ अपने प्रति राजा के व्यवहार में अचानक आए परिवर्तन के कारण को ढूँढ़ने की चेष्टा करने लगा| इधर गोरम्भ दंतिल सेठ को चिढ़ाने की गरज से उधर से गुजरा तो सेठ को याद आ गया कि अपनी कन्या के विवाह वाले दिन उसने उसका अपमान कर दिया था| इसलिए हो सकता है, इसने राजा के कान भरे हो| वह गोरम्भ के पास आया और उससे क्षमा माँगी| गोरम्भ दंतिल सेठ को उसका गौरव वापस दिलाने का आश्वासन देकर घर वापस लौट गया|
अगले दिन प्रातःकाल जब राजा अर्धनिंद्रा में था तो गोरम्भ बड़बड़ाते हुए बोला, ‘हमारे महाराज को देखो, शौच करते समय ककड़ी खाते है|’
‘यह क्या बक रहा है?’ राजा ने तत्काल गोरम्भ को डाँटते हुए कहा|
‘महाराज! क्या मैंने कुछ कहा है?’ गोरम्भ ने भोलेपन से पूछा|
गोरम्भ की बात पर राजा ने सोचा, लगता है गोरम्भ को कुछ-न-कुछ बड़बड़ाने की आदत है| ज़रूर रानी और दंतिल सेठ के आलिंगन वाली बात भी बकवास और कोरा झूठ थी| यह सोचकर राजा ने दंतिल सेठ को पुनः रनिवास में निर्बाध प्रवेश की अनुमति दे दी और दंतिल सेठ का खोया मान-सम्मान उसे वापस मिल गया|
कथा-सार
गरीब हो या धनी- आत्म-सम्मान सभी का होता है| किसी को तुच्छ जानकर उसका अपमान करना मर्यादाहीनता की श्रेणी में आता है| अपमान का डंक बेहद पीड़ादायक होता है और पीड़ित तुरंत इसका प्रतिशोध लेना चाहता है, यही गोरम्भ ने किया| दूसरी महत्वपूर्ण शिक्षा जो इस कथा से मिलती है, वह यह है कि मात्र कानों सुनी बात पर विश्वास करना ठीक नही, जबकि कभी-कभी तो आँखों देखा भी मिथ्या सिद्ध हो जाता है|