Homeशिक्षाप्रद कथाएँसंत के उपदेश से सुखी व प्रसन्न हुए राजा और प्रजा

संत के उपदेश से सुखी व प्रसन्न हुए राजा और प्रजा

राजा वीरसेन को संत-सत्संग अतिप्रिय था। उनके दरबार में प्राय: दूर-दूर से साधु-संत आते थे और वीरसेन उन्हें यथोचित सम्मान देकर उनसे ज्ञान की बातें ग्रहण करते थे। एक दिन उनके राज्य की सीमा पर एक विख्यात संत ने डेरा डाला। राजा वीरसेन को पता चला तो वे स्वयं उसका सत्कार करने पहुंचे।

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उस समय संत के सम्मुख हजारों धर्मप्रेमी बैठे थे और उनका उपदेश सुन रहे थे। राजा वीरसेन भी एक ओर चुपचाप बैठकर सुनने लगे। जब कार्यक्रम समाप्त हुआ और लोग चले गए तो राजा ने संत से भेंट की। दोनों के मध्य अत्यंत स्नेहिल वार्तालाप हुआ। अंत में राजा ने इच्छा व्यक्त की कि संत उन्हें ज्ञान के वे मोती दें, जो आजीवन उनके काम आएं। तब संत ने राजा को जरा-सी रुई, एक मोमबत्ती और एक सुई दी।

राजा ने इन्हें दिए जाने का कारण पूछा तो संत बोले- रुई नग्नता को ढंकती है, इसी से कपड़ा बनता है। कपड़े से व्यक्ति की इज्जत होती है। यह आत्मसम्मान की द्योतक है। तुम इसी प्रकार जीवन में सभी की लाज रखना। मोमबत्ती प्रकाश की प्रतीक है। जब यह जलती है तो इसके प्रकाश से अंधकार दूर होता है। मोमबत्ती के प्रकाश की भांति ही तुम अपने साथ दूसरों के जीवन को भी आलोकित करो। जहां तक सुई का सवाल है तो यह पिरोने के काम आती है। इसका धर्म टूटे हुए को जोड़ना और फटे हुए को सिलना है। तुम भी अपने जीवन में किसी को अलग मत करना, बल्कि दिलों को जोड़ने का काम करना।

राजा ने संत की आज्ञा शिरोधार्य की और उस पर अमल भी किया। फलत: उसके साथ-साथ उसकी प्रजा का जीवन भी सुखमय हो गया। 

धीरज और