Homeशिक्षाप्रद कथाएँसाले साहब की जिद (बादशाह अकबर और बीरबल)

साले साहब की जिद (बादशाह अकबर और बीरबल)

बादशाह अकबर के साले साहब ने एक बार फिर से स्वयं को दीवान बनाने की जिद की| अब बादशाह सीधे-सीधे तो साले साहब को इंकार कर नहीं सकते थे, सो उन्होंने फिर एक शर्त रखी और कहा – “ठीक है, मैं तुम्हें दीवान बना दूंगा|

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पहले तुम्हें एक काम करना होगा, यह लो तीन रुपये और इससे तीन चीजें खरीदना| हर चीज एक रुपये की हो और पहली चीज वहां की हो, दूसरी यहां की और तीसरी न यहां की और न वहां की|”

साले साहब तीन रुपये लेकर बाजार चले गए| उसने बहुत कोशिश की, पर उसे यह तीनों चीजें कहीं नहीं मिलीं| थक-हार कर वह दरबार में लौट आया और कहा – “हुजूर, आप हर बार मुझे जान-बूझकर मुश्किल काम सौंपते हैं, ताकि मैं दीवान बन ही नहीं सकूं|”

“साले साहब! काम कोई मुश्किल नहीं होता, बस काम को करने की लगन होनी चाहिए| यही काम मैं अब बीरबल को सौंपता हूं, देखना वह जरूर इसे पूरा करेगा|” इसके बाद उन्होंने तीन रुपये बीरबल को देकर वही बातें कहीं जो अपने साले साहब से कहीं थीं|

बीरबल बाजार गया और कुछ देर बाद लौटा तो बादशाह ने पूछा -“कहो बीरबल कुछ मिला?”

“जी हुजूर, पहले मैंने एक रुपया फकीर को दान दिया और पुण्य खरीद लिया; इससे वहां की चीज मिल गई| दूसरे रुपये को मैंने खाने-पीने में खर्च किया जो यहां की चीज थी और तीसरा रुपया मैंने जुआ खेलने में गंवा दिया जो न यहां काम आया और न वहां|” बीरबल ने जवाब दिया|

“देखा, साले साहब, इसे कहते हैं अक्लमंदी| तभी तो बीरबल ही मुझे दीवान के रूप में पसंद है|”

साले साहब शर्मिंदगी महसूस कर रहे थे|