संयम पाने पर यूसुफ को मिली दीक्षा
मिस्र के प्रसिद्ध संत जुन्नून के पास एक शिष्य दीक्षा लेने आया, किंतु चार वर्ष वहां रहकर भी वह जुन्नून से यह नहीं कह सका कि मैं धर्म की दीक्षा लेने आया हूं। एक दिन संत ने उससे पूछा- क्या चाहते हो? तब युवक यूसुफ हुसैन ने कहा- मैं आपका शिष्य बनकर धर्म की दीक्षा लेना चाहता हूं।
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संत ने कहा- वह तो हो जाएगा, पहले तुम्हें मेरा एक काम करना होगा। मेरा एक बक्सा मेरे मित्र के पास नील नदी के किनारे तक पहुंचाना होगा। शर्त यह है कि रास्ते में वह बक्सा खोलना मत। यूसुफ ने सफर शुरू किया। चलते-चलते कई दिन हो गए और उसकी उत्सुकता चरम पर पहुंच गई कि आखिर बक्से में है क्या? और एक दिन उसने बक्सा खोल ही लिया।
ज्यों ही बक्सा खुला, उसमें से एक चुहिया निकलकर भाग गई। यूसुफ को समझ नहीं आया। वह निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचा, जहां संत जुन्नून के मित्र ने वह बक्सा खोला तो वह खाली था। उन्होंने यूसुफ ने कहा- संत जुन्नून अब तुम्हें दीक्षा नहीं देंगे। जब तुम एक चुहिया को नहीं संभाल सकते तो धर्म-ज्ञान को कैसे संभालोगे? यूसुफ लौटकर आया तो संत जुन्नून ने कहा- तुम मुझे गुरु बनाना चाहते हो और मेरी ही आज्ञा नहीं मानी।
मैं तुम्हें अपना शिष्य नहीं बना सकता। जाओ, मन पर संयम पाओ और गुरु की आज्ञा मानना सीखो। यूसुफ दुखी होकर लौट गया, किंतु वर्षो बाद पुन: लौटा। जब जुन्नून ने पाया कि वह आत्मसंयम पा चुका है, तब उन्होंने उसे दीक्षा दी। आगे चलकर वह प्रसिद्ध संत यूसुफ हुसैन के नाम से जाना गया।
कथा संयम से संतत्व प्राप्ति को इंगित करती है। भावना, इच्छा, लालसा आदि सभी दृष्टियों से स्वयं पर पूर्ण नियंत्रण ही संत-भाव की उपलब्धि कराता है और व्यक्ति सामान्य से विशिष्ट होकर संपूर्ण समाज के लिए आदर्श बन जाता है।