साहसी बालक
शाम का समय था| आंध्र प्रदेश के खम्माम जिले के माल्लेपानी जगह की बात है| दिन-भर पढ़ने के बाद एक चौदह वर्ष का बालक घर वापस आ रहा था|
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उसने रास्ते में एक औरत के चीखने-चिल्लाने की आवाज सुनी| उसने सामने देखा कि सड़क के पास एक कुएँ पर एक औरत चीखने-चिल्लाने के बाद रो रही थी और वह कुएँ के अन्दर झाँक रही थी| औरत की चीख-पुकार से वहाँ कई राहगीर इकट्ठे हो गए, पर सब हताश और किंकर्तव्य विमूढ़ खड़े थे| मालूम हुआ कि उस महिला का चार वर्षीय लड़का कुएँ में गिर गया था| रोती हुई महिला का क्रन्दन बढ़ गया था, पर कोई उसकी मदद नहीं कर रहा था|
वह कुआँ लगभग दस मीटर गहरा था| उसमें तीन मीटर गहरा पानी भी भरा था| उस गहरे और संकरे कुएँ में कूदने का अर्थ था- मौत| वह चौदह वर्षीय वीर बालक वीरस्वामी एक क्षण ठिठका| अपना बस्ता उसने कुएँ की जगत पर रख दिया| कपड़े पहने ही एक रस्सी के सहारे कुएँ में कूद गया| डूबते हुए बालक को उसने बचा लिया| बचाव में उसे थोड़ी चोट भी लग गई, पर उसे उसकी परवाह बिल्कुल न थी| उसे यही विश्वास था कि संकट की उस घड़ी में उसने एक माता की पुकार पर एक डूबते बालक की प्राणरक्षा की| व्यक्ति में अगर साहस हो तो वह असम्भव को सम्भव कर सकता है|