सद्विचारों को जीवन में उतारने पर मिलेगी शांति
एक महात्माजी गांव से गुजर रहे थे। गांव-गांव घूमकर वे अपने शिष्यों के साथ प्रेम और भाईचारे का उपदेश दे रहे थे। इसी प्रकार भ्रमण करते हुए वे ऐसे गांव में पहुंचे, जहां हिंदू-मुस्लिम विवाद चल रहा था। महात्माजी के आने से पूर्व गांव के दोनों समुदायों में खासी मारपीट हो चुकी थी।
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कई घायल थे तो कुछ पुलिस स्टेशन या जेल में थे। महात्माजी दो दिन वहां रहे और लोगों को समझा-बुझाकर शांत किया। जब वहां के हिंदू और मुस्लिम काफी संयमित हो गए, तो महात्माजी ने अगले गांव की ओर प्रस्थान किया। वहां पहुंचने पर महात्माजी ने हिंदू व ईसाइयों को लड़ते पाया। महात्माजी ने यहां भी विवाद को शांत करा दिया। वहां के चर्च के पादरी ने उनका अभिवादन करते हुए कहा- मैं आपको हार्दिक धन्यवाद देता हूं कि आपने यहां शांति स्थापित कर दी। अब आप मेरे साथ चलकर चर्च को पवित्र कीजिए। महात्माजी पादरी के साथ चर्च गए।
पादरी ने उन्हें पूरा चर्च घुमाया। फिर क्राइस्ट की एक भव्य मूर्ति दिखाते हुए पादरी बोले- देखिए, इनके चेहरे पर कितनी शांति है। ईसा मसीह ने कहा है कि शत्रु के प्रति भी मित्रवत रहें। तब महात्माजी ने कहा- फादर! महावीर स्वामी ने तो यहां तक कहा है कि किसी को शत्रु मानना ही नहीं चाहिए। किंतु ईसा और महावीर के भक्त ये बातें मानते कहां हैं? जिस धर्म के नाम पर जान देने व लेने के लिए तत्पर होते हैं, उसी धर्म के नाम पर प्रेम, शांति व बंधुत्व बनाकर रख सकते हैं।
वस्तुत: नैतिकता विषयक बातें हम बोलते तो हैं किंतु आचरण में उतारते नहीं। सद्विचारों को आचरण में उतारने पर ही आदर्श स्थिति कायम होगी।