सच्चा शिष्य
यह बात उस समय की है जब गुरु गोविंद सिंह जी मुगलों से संघर्ष कर रहे थे। युद्ध में उनके सभी शिष्य अपने-अपने तरीके से सहयोग कर रहे थे। शाम को युद्ध समाप्त हो जाने के बाद गुरु गोविंद सिंह जी के सभी सेनानी उनके साथ बैठकर उनसे उपदेश ग्रहण करते और आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श करते थे। हर सेनानी को गुरु जी ने निश्चित जिम्मेदारी सौंप रखी थी ताकि वे अपना ध्यान युद्ध पर लगा सकें।
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एक दिन उन्होंने अपने एक शिष्य धन्ना को युद्ध में सैनिकों को पानी पिलाने का काम सौंपा। वह अपने कंधे पर पानी से भरा मशक लटकाकर सैनिकों को पानी पिलाने के काम में तन-मन से जुट गया। युद्ध करते हुए जब काफी समय बीत गया तो एक दिन किसी सैनिक ने गुरु गोविंद सिंह जी से शिकायत की कि धन्ना घायल सिखों के साथ दुश्मन के भी घायल सैनिकों को पानी पिलाता है। जब उसे मना करते हैं तो वह हमारी बात को स्वीकार नहीं करता और अपने काम में लगा रहता है। गुरु जी ने धन्ना को अपने पास बुलाया और पूछा, ‘क्यों धन्ना, क्या यह सच है कि तुम घायल सिख सैनिकों के साथ मुगलों के सैनिकों को भी पानी पिलाते हो?’
धन्ना ने हाथ जोड़कर उत्तर दिया, ‘हां, गुरु महाराज, यह पूरी तरह सच है कि मैं शत्रु के सैनिकों को भी पानी पिलाता हूं क्योंकि युद्ध भूमि में पहुंचने पर मुझे शत्रु और मित्र में कोई अंतर नहीं दिखाई देता। फिर मैं आपकी दी हुई शिक्षा के अनुसार सब में एक ही परमात्मा को देखता हूं। इसलिए मुझे जो भी घायल पड़ा दिखाई देता है, वह चाहे सिख हो या मुगल, मैं उन सभी को समान रूप से पानी पिलाता हूं।’
गुरु जी ने धन्ना का उत्तर सुनकर उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, ‘तूने मेरी दी हुई शिक्षा को सही अर्थों में आत्मसात किया है और उसे सार्थक सिद्ध किया है। तू मेरा सच्चा शिष्य है।’