रुपए की खेती

किसी गांव में एक किसान रहता था| वह बड़ा ही भला और मेहनती था| उसके दो लड़के थे| वह दोनों को अच्छी सीख देता था| कहता था – “जो बोओगे, वही काटोगे|”

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जब किसान बूढ़ा हुआ तो उसने अपने सारे रुपए और जमीन दोनों लड़कों में बांट दी| एक दिन किसान मर गया|

बड़ा लड़का चतुर था| उसने बाप के दिए पैसे से बढ़िया बीज खरीदा और खेत को खूब जोतकर बो दिया|

छोटा लड़का बहुत ही भोला था| उसे याद आया कि उसके पिता कहा करते थे – ‘जो बोओगे, सो काटोगे|’

उसने सोचा कि यदि वह रुपयों को बो देगा तो उनकी फसल उगेगी और अनाज की तरह उसका घर रुपयों से भर जाएगा|

यह सोचकर उसने सारे रुपए खेत में बो दिए|

बड़े भाई की खेती लहलहाने लगी, लेकिन छोटे भाई के खेत में अंकुर भी नहीं फूटा|

काफी दिन बीत गए तो छोटे भाई को हैरानी होने लगी| मारे परेशानी के वह बहुत ही दुबला हो गया| एक दिन बड़े भाई ने उससे दुबले होने का कारण पूछा तो उसने सारी बातें बता दी|

सुनकर बड़ा भाई उसके भोलेपन पर बहुत हंसा| उसने कहा – “पिताजी जो कहते थे उसका मतलब यह था कि दूसरों के साथ हमेशा भलाई करो| बदले में तुम्हें भी भलाई मिलेगी|”

वह छोटे भाई को साथ लेकर उसके खेत में गया और रुपए ढूंढ़कर निकलवाए, उनसे बीज खरीदवाया और खेती कराई|

जब बढ़िया फसल आई तो भोले भाई ने समझा कि खेत में अनाज ही उगता है| रुपए की फसल तो तिजोरी में होती है|

बड़प्पन