रुपाली और जादूगर
सूरजगढ़ देश में एक राजा था हुकुम सिंह | उसके राज्य में सब तरफ सुख-शांति थी | प्रजा बहुत मेहनती और सुखी थी | चारों ओर हरियाली और खुशहाली का साम्राज्य था |
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राजा हुकुम सिंह भी अपनी प्रजा का सुख देखकर खुश होता, पर मन ही मन वह अपनी पत्नी का दुख देखकर बहुत दुखी था |
राजा ने साधु-महात्माओं से काफी इलाज करवाए, पूजा-पाठ की, पर कोई लाभ नहीं हुआ | प्रजा भी राजा के लिए संतान की मिन्नत कर-करके थक चुकी थी |
राजा धीरे-धीरे बूढ़ा हो चला था, तभी उसके यहां एक सुंदर पुत्री ने जन्म लिया | सारे राज्य में खुशियां छा गईं | राजा ने गरीबों को वस्त्र व भोजन दान किया तथा पूरे राज्य में दावत का ऐलान किया | हर व्यक्ति ने भी भरकर खाया और राजा को आशीष देता चला गया |
बहुत रूपवान होने के कारण राजकुमारी का नाम रूपाली रखा गया | ज्यों-ज्यों रूपाली बड़ी होने लगी, उसका रूप निखरने लगा | चांद से मुखड़े पर उसके घने घुंघराले बाल हर देखने वाले को बरबस ही आकर्षित कर लेते थे |
राजकुमारी राजकुमारों की भांति भाले-तीर चलाना सीखने लगी | वह रूपवान तो थी ही, वीर और साहसी भी थी | उसमें दुर्गुण था तो एक ही, वह बहुत जिद्दी व घमंडी थी |
राजा के बुढ़ापे की संतान होने के कारण अत्यधिक लाड़-प्यार मिलने से ही रूपाली जिद्दी बन गई थी | जो बात ठान लेती, उसे पूरा करके ही छोड़ती थी |
ज्यों-ज्यों रूपाली विवाह योग्य हो रही थी, राजा हुकुम सिंह का बुढ़ापा बढ़ रहा था | अत: वह रूपाली के विवाह के लिए चिन्तित रहने लगा |
अनेक राजकुमारों के प्रस्ताव रूपाली से विवाह के लिए आए, पर राजकुमारी रूपाली उन सभी में कोई न कोई खोट निकालकर अस्वीकार कर देती |
राजा हुकुम सिंह की चिंता बढ़ती जा रही थी | एक दिन रूपाली अपनी प्रिय सखी सलिला व घुड़सवारों के साथ शिकार के लिए निकल पड़ी | रूपाली निपुणता से घोड़े को तेज दौड़ाती हुई आगे निकल गई | अपने साथियों से बहुत दूर आने पर उसने देखा वह अकेली रह गई है | तभी उसने अपने सामने एक सुंदर हिरन देखा |
ज्यों ही रूपाली ने तीर चलाना चाहा, हिरन बोला – “राजकुमारी, तुम मुझे छोड़ दो तो मैं तुम्हें परी देश की सैर करा सकता हूं |”
राजकुमारी हिरन की बात सुनकर घोड़े से उतर गई और बोली – “जब तक मेरे सभी घुड़सवार आते हैं, तब तक मैं परीलोक की सैर कर लेती हूं |”
रूपाली को प्यास लगी थी | वह हिरन के साथ नदी किनारे पहुंच गई | वह हिरन वास्तव में जादूगर था, वह उसे पास ही जादुई नदी के पास ले गया |
ज्यों ही रूपाली ने नदी का पानी छुआ, वह पत्थर की बुत बन गई और नदी के अंदर चली गई |
उधर, घुड़सवार सारे जंगल में रूपाली को ढूंढ़कर थक गए | जब रूपाली का कहीं पता न चला तो वे निराश होकर लौट आए |
राजा ने सारे राज्य में घोषणा करा दी कि जो भी व्यक्ति राजकुमारी रूपाली को ढूंढ़ कर लाएगा, उसी के साथ राजकुमारी का विवाह कर दिया जाएगा |
अनेक व्यक्ति जंगल में राजकुमारी को ढूंढ़ने गए, पर निराश होकर लौट आए |
मंगल सुमन नामक एक युवक भी रूपाली को ढूंढ़ने अपने घोड़े पर निकला | बहुत आगे निकल जाने पर उसे वही हिरन दिखाई दिया | हिरन बहुत सुंदर था |
मंगल सुमन ने सोचा कि राजकुमारी तो मिली नहीं, क्यों न इसका आखेट कर लूं | ज्योंही उसने हिरन को निशाना बनाया हिरन पहले की भांति बोला – “मैं तुम्हें परीलोक की सैर करा सकता हूं |”
मंगल सुमन ने हिरन की बात की परवाह किए बिना तीर चला दिया | तीर हिरन के माथे में लगा और हिरन एक जादूगर बनकर गिर गया व तड़पने लगा | मंगल सुमन ने तुरंत एक तीर और चलाया और जादूगर लुढ़कता हुआ एक नदी के पास जा गिरा |
जादूगर के मरते ही नदी का जल सूख गया, अब वहां एक सुंदर महल खड़ा था |
मंगल सुमन जब महल के अंदर गया तो वहां एक सुंदर राजकुमारी व अनेक लोगों को बंदी देखा | उसने राजकुमारी से परिचय पूछा तो वह बोली – “मेरा नाम रूपाली है | मैं सूरजगढ़ के राजा हुकुम सिंह की पुत्री हूं | मैं परीलोक की सैर के लालच में जादूगर के चंगुल में फंस गई | यहां बंदी सभी लोग परीलोक के सैर के लालच में आए थे |”
मंगल सुमन ने अपना परिचय देते हुए बताया कि तुम्हारे पिता तुम्हारे लिए बहुत चिंतित हैं | चलो, अपने राज्य वापस चलो | मंगल सुमन ने वहां सभी कैदियों को मुक्त कर दिया और रूपाली को घोड़े पर बिठाकर सूरजगढ़ ले आया | राजकुमारी मंगल सुमन की वीरता से प्रभावित हो चुकी थी | अत: उसने स्वयं ही अपने पिता से मंगल सुमन की वीरता की प्रशंसा की | राजा हुकुम सिंह ने जब अपनी घोषणा के बारे में रूपाली को बताया, तो राजकुमारी के गालों पर शर्म की लाली छा गई |
राज पंडित को बुलाकर विवाह की तिथि घोषित कर दी गई और बहुत ही धूमधाम से रूपाली का विवाह मंगल सुमन से कर दिया गया तथा मंगल सुमन को अपना उत्तराधिकारी बना कर सूरजगढ़ का राज्य सौंप दिया |