राजकुमार उत्तर
राजा विराट के पुत्र का नाम उत्तर था| वह स्वभाव से बड़ा दंभी, सदा अपने पराक्रम का बखान करने वाला था| पांडव अपने अज्ञातवास का समय विराट के यहां व्यतीत कर रहे थे, इसलिए कोई भी इस भय से कि कहीं उनके सही रूप का पता न चल जाए, उसकी बात कोई नहीं काटते थे|
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जब उनका यह निश्चित समय पूरा होता आया, तो सुशर्मा ने विराट के गोधन को हरण करने के लिए छापा मारा| राजा विराट सेना लेकर उसका सामना करने निकल पड़े| तब तक दूसरी ओर से कौरवों ने आक्रमण कर दिया| बड़ी विकट परिस्थिति आ गई थी| अकेला विराट तो शत्रुओं का सामना कैसे कर सकता था| राजकुमार उत्तर अपने पराक्रम की डींग हांक रहा था और कह रहा था कि यदि उसे कोई कुशल सारथी मिल जाए तो वह जाकर शत्रु की सेना को एक क्षण में ही तितर-बितर कर सकता है|
बृहन्नला नामधारी अर्जुन ने उसकी बातें सुनीं, लेकिन वह चुप बैठा रहा| वह तो उस समय नपुंसक का रूप धारण किए हुए था| लेकिन सैरंध्री बनी द्रौपदी से न रहा गया| उसने कह-सुनकर अर्जुन को उत्तर का सारथ्य करने के लिए तैयार कर दिया|
जब बृहन्नला नामधारी अर्जुन सारथ्य ग्रहण करने के लिए आगे आए तो उत्तर उनकी हंसी उड़ाने लगा और कहने लगा, “क्या अभी नंपुसकों ने भी युद्धभूमि में पैर रखा है| यह बृहन्नला क्या सारथी का काम करेगा?”
बृहन्नला कुछ न बोला लेकिन सैरंध्री ने राजकुमार उत्तर को समझाया और बृहन्नला के गुणों का बखान किया, जिससे राजकुमार अंत में बृहन्नला को ले जाने के लिए तैयार हो गया| उत्तर ने बृहन्नला को कवच आदि पहनने को दिए जिन्हें उल्टा-सीधा पहनने लगा| इस पर उत्तर और भी जोर से हंस पड़ा| अपनी प्रत्येक क्रिया से बृहन्नला रूपधारी अर्जुन ने अपने को नपुंसक व्यक्त किया| उन्हें युद्ध-भूमि में जाता देखकर अंत:पुर की अन्य स्त्रियां भी हंसने लगीं| जब उत्तर रथ पर सवार हुए और बृहन्नला ने घोड़ों की रास पकड़ी तो उत्तरा ने हंसकर अपने भाई को कहा, “भीष्म, द्रोण आदि महारथियों को परास्त करके उनके उत्तरीय वस्त्र लेते आना, मैं उन वस्त्रों की गुड़िया बनाउंगी|”
नगर से बाहर रथ निकला तो उत्तर को सामने ही शत्रुओं की विशाल वाहिनी दिखाई देने लगी| उसे देखकर वह घबराने लगा| उसने बृहन्नला से कहा, “बृहन्नला ! शत्रु की इस विशाल सेना का सामना मैं कैसे कर पाऊंगा| चलो रथ को वापस लौटा ले चलो| मैं युद्ध नहीं कर सकूंगा|”
जब बृहन्नला ने रथ पीछे की ओर नहीं मोड़ा तो वह रथ से कूदकर नगर की ओर भाग गया| बृहन्नला ने पुकारकर उसे रोकना चाहा, लेकिन वह तो भागता ही गया| बृहन्नला ने रथ रोक दिया और उत्तर को पकड़ने के लिए दौड़ा| उस समय उसका केसपाश पीठ पर लटक रहा था, ओढ़नी अस्त-व्यस्त हो रही थी और उसकी चाल भी स्त्रियों जैसी थी| यह दृश्य देखकर कौरव दल के सभी लोग हंसने लगे|
बृहन्नला ने उत्तर को रास्ते में ही पकड़ लिया| और वह उसे इस शर्त पर लौटा लाया कि वह तो रथ हांके और बृहन्नला शत्रुओं से युद्ध करे| उत्तर यह शर्त स्वीकार करके लौट आया| रास्ते में शमी वृक्ष के ऊपर रखे हुए अपने धनुष-बाण, कवच आदि उत्तर से निकलवाकर बृहन्नला ने पहने| अब उनका नंपुसक भाव प्राय: मिट गया था और अपना गाण्डीव लेकर वीर धनंजय कौरवों के सामने आ डटा| किन्हीं-किन्हीं को तो शक हो गया था कि वह अर्जुन के सिवा और कोई नहीं है, लेकिन निश्चयपूर्वक कोई नहीं कह पाया था| घमासान युद्ध प्रारंभ हो गया| अर्जुन ने अकेले ही कौरवों के छक्के छुड़ा दिए| जितने भी योद्धा युद्ध करने गए थे, विचलित होकर भागने लगे| भीष्म, द्रोण आदि को अर्जुन ने तीक्ष्ण बाणों से पृथ्वी पर गिरा दिया| असह्य पीड़ा के कारण उनको मूर्च्छा आ गई| उस समय बृहन्नला ने उत्तर से कहा, “जाओ राजकुमार ! इन वीरों के उत्तरीय-वस्त्र आदि उतार लो| घर पहुंचने पर उत्तरा मांगेगी तो दे देना|”
उत्तर ने जाकर भीष्म, द्रोण आदि योद्धाओं के उत्तरीय तथा अन्य वस्त्र उतार लिए| शत्रुओं को पूरी तरह पराजित करके बृहन्नला और उत्तर नगर को वापस आने लगे| उस समय बृहन्नला ने उत्तर से कहा, “राजकुमार उत्तर ! किसी को मेरे बारे में कुछ भी मत बताना| जाकर यही घोषणा करना कि विजय तुमने ही अपने पराक्रम से प्राप्त की है|”
उत्तर यह सुनकर लज्जित होने लगा, लेकिन उसने बृहन्नला के कहने से यही घोषणा की| मत्स्य-नरेश विराट यह सुनकर अत्यधिक प्रसन्न हुए और उत्तर को आशीर्वाद देने लगे| चारों ओर उत्तर की वीरता के गुण गाए जाने लगे, लेकिन कंक नामधारी युधिष्ठिर ने इस पर विश्वास नहीं किया और उन्होंने विराट के सामने ही अपना संदेह प्रकट किया, जिससे क्रुद्ध होकर विराट ने उनके मुंह पर पासे दे मारे| मुंह से खून गिरने लगा, जिसे सैरंध्री ने एक बरतन में समेट लिया|
कुछ ही दिन में वास्तविक बात सामने आ गई| राजा विराट को जब यह पता चला कि अनेक वेश धारण करके ये पांचों पांडव ही इसके यहां आश्रय ग्रहण किए हुए थे, तो वे अत्यंत दुखी होकर उनसे क्षमा मांगने लगे| उत्तर भी सच्ची बात के प्रकाश में आने पर लज्जित हुआ और फिर कभी भी उसने अपनी झूठी प्रशंसा नहीं की| दुरभिमान उसकी प्रकृति में फिर रहा ही नहीं| बाद में तो वह सच्चा योद्धा हो गया और यही कारण है कि महाभारत के युद्ध में उसने खूब खुलकर कौरव सेना का मुकाबला किया और अंत में वीरगति प्राप्त की| मद्रराज शल्य जैसे योद्धा से वह टकराया था और उसके दांत खट्टे कर दिए थे| लेकिन पहले ही दिन वह मारा गया था|