प्रेम का अमोघ अस्त्र
कौशल देश में एक बड़ा ही भयंकर डाकू रहता था| उसका नाम था अंगुलिमाल| उसने लोगों को मार-मारकर उनकी उंगलियों की माला अपने गले में डाल रखी थी, इसलिए उसका यह नाम पड़ा|
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उन दिनों कौशल में राजा प्रसेनजित राज्य करता था| अंगुलिमाल के आतंक से वह बेहद परेशान था| उसे पकड़ने के लिए उसने अपनी पूरी सेना तैनात कर रखी थी, अस्त्र-शस्त्रों का उपयोग किया, लेकिन अंगुलिमाल उनके हाथ नहीं आया|
एक बार प्रसेनजित पांच सौ सैनिकों को लेकर अंगुलिमाल को पकड़ने के लिए इधर-उधर दौड़-धूप कर रहा था कि उसे पता चला, भगवान बुद्ध वहां विहार कर रहे हैं| वह उनके पास गया| उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ रही थीं|
बुद्ध ने कहा – “क्या बात है? इतने परेशान क्यों दिखाई दे रहे हो? क्या किसी राजा ने तुम पर हमला कर दिया है?”
प्रसेनजित बोला – “भंते, किसी ने हमला नहीं किया| मेरे राज्य में अंगुलिमाल नाम के डाकू ने तबाही मचा रखी है| मैं उसी को पकड़ने की दिन-रात कोशिश कर रहा हूं|”
बुद्ध ने मुस्कराकर कहा – “वह तुम्हारी पकड़ में नहीं आता! अच्छा, यह बताओ कि यदि वह धर्मात्मा के रूप में तुम्हारे सामने आए तो तुम क्या करोगे?”
“मैं उसका स्वागत करूंगा और उसकी सेवा और रक्षा करूंगा|” प्रसेनजित ने कहा|
तब बुद्ध ने पास बैठे व्यक्ति की बांह पकड़कर उसे राजा के सामने कर दिया| बोले – “यह रहा अंगुलिमाल|”
प्रसेनजित को काटो तो खून नहीं! वह थर-थर कांपने लगा|
बुद्ध ने कहा – “राजन, अब तुम्हें इससे डरने की आवश्यकता नहीं है|”
इसके बाद प्रसेनजित को पता चला कि भगवान बुद्ध के प्रेम और करुणा के आगे अंगुलिमाल नतमस्तक हो गया| उसे नया जन्म मिला है| अपनी खूंखार वृत्तियों को त्यागकर वह भिक्षु बन गया है|
प्रसेनजित की आंखें खुल गईं| एक शासक के नाते वह मान बैठा था कि सैन्य और शस्त्र-बल से बढ़कर और कोई बल नहीं है|
आज उसे मालूम हुआ कि प्रेम का मुकाबला दुनिया में कोई ताकत नहीं कर सकती|
उसने अंगुलिमाल का बड़े प्रेम से अभिवादन किया और उससे कहा – “मैं तुम्हारे भोजन, वस्त्र आवास आदि की व्यवस्था कर देता हूं|”
अत्यंत विनम्र भाव से अंगुलिमाल बोला – “राजन, आप चिंता न करें, मुझे सब कुछ मिल गया है|”
प्रसेनजित की आंखें डबडबा आईं और वह श्रद्धा से अवनत होकर वहां से चला गया|