प्रतिज्ञा
भगवान श्रीराम जब समुद्र पार कर लंका जाने के लिए समुद्र पर पुल बांधने में सलंग्न हुए, तब उन्होंने समस्त वानरों को संकेत दिया कि, ‘वानरो ! तुम पर्वतों से पर्वत खण्ड लाओ जिससे पुल का कार्य पूर्ण हो जाए|’ आज्ञा पाकर वानर दल भिन्न-भिन्न पर्वतों पर खण्ड लाने के लिए दौड़ पड़े और अनेक पर्वतों से बड़े-बड़े विशाल पर्वत खण्डों को लाने लगे| नल और नील जो इस दल में शिल्पकार थे, उन्होंने कार्य प्रारंभ कर दिया|
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हनुमान इस वानर दल में अधिक बलशाली थे| वे भी गोवर्धन नामक पर्वत पर गए और उस पर्वत को उठाने लगे, परंतु अत्यंत परिश्रम करने पर भी वे पर्वतराज गोवर्धन को न उठा सके| हनुमान को निराश देखकर पर्वतराज ने कहा, “हनुमान ! यदि आप प्रतिज्ञा करें कि भक्त शिरोमणि भगवान श्रीराम के दर्शन करा दूंगा तो मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं|”
यह सुनकर हनुमान ने कहा, “पर्वतराज ! मैं आपको विश्वास दिलाता हूं कि आप मेरे साथ चलने पर श्रीराम का दर्शन कर सकेंगे|” विश्वास प्राप्त कर पर्वत राज गोवर्धन हनुमान जी के कर-कमलों पर सुशोभित होकर चल दिए|
जिस समय हनुमान जी पर्वतराज गोवर्धन को लेकर ब्रजभूमि पर से आ रहे थे, उस समय सेतु बांधने का कार्य संपूर्ण हो चुका था और भगवान श्रीराम ने आज्ञा दी कि, “वानरो ! अब और खण्ड न लाए जाएं, जो जहां पर है, वह वहीं पर पर्वत खण्डों को रख दें|”
आज्ञा पाते ही समस्त वानरों ने जहां का तहां पर्वत शिलाओं को रख दिया| हनुमान जी ने भी आज्ञा का पालन किया और उन्हें पर्वतराज गोवर्धन को वहीं पर रखना पड़ा|
यह देख पर्वतराज ने कहा, “हनुमान जी ! आपने तो विश्वास दिलाया था कि मुझे श्रीराम के दर्शन कराएंगे, पर आप तो मुझे यहीं पर छोड़कर चले जाना चाहते हैं| भला कहिए तो सही, अब मैं पतित पावन श्रीराम जी के दर्शन कैसे कर सकूंगा|”
हनुमान जी विवश थे, क्या करते प्रभु की आज्ञा ही ऐसी थी| हनुमान जी शोकातुर होकर कहने लगे, “पर्वतराज ! निराश मत हों, मैं श्रीराम जी के समीप जाकर प्रार्थना करूंगा, आशा है कि दीनदयालु आपको लाने की आज्ञा प्रदान कर देंगे, जिससे आप उनका दर्शन कर सकेंगे|”
इतना कहकर हनुमान जी वहां से चल दिए| और रामदल में आकर श्रीराम जी के चरणों में उपस्थित हो अपनी प्रतिज्ञा निवेदन की|
श्रीराम जी ने कहा, “हनुमान जी ! आप अभी जाकर पर्वतराज से कहिए कि वे निराश न हों| द्वापर में कृष्ण रूप में उसे मेरा दर्शन होगा|”
हनुमान जी तुरंत ही पर्वतराज गोवर्धन के पास गए और जाकर बोले, “पर्वतराज ! भगवान श्रीराम की आज्ञा है कि आपको द्वापर में कृष्ण रूप में दर्शन होंगे|”
द्वापर आया| भगवान श्रीराम ने श्रीकृष्ण रूप धारण कर ब्रज में जन्म लिया| उस समय देवताओं के राजा इंद्र ने ब्रजवासियों द्वारा अपनी पूजा न पाने के कारण क्रोधातुर हो ब्रज को समूल नष्ट करने का विचार करके मेघों को आज्ञा दी कि ‘आप ब्रज में जाकर समस्त ब्रजभूमि को वर्षा द्वारा नष्ट कर दो|’ मेघ देवराज इंद्र की आज्ञा पाकर ब्रज पर मूसलाधार जल बरसाने लगे|
अतिवृष्टि के कारण ब्रज में हाहाकार मच गया| समस्त ब्रजवासी इंद्र के कोप से भयभीत होकर नंद बाबा के घर की ओर दौड़े|
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “ब्रजवासियों ! धैर्य धारण करो, इंद्र का कोप आपका कुछ न कर सकेगा; आओ, हमारे साथ चलो|”
भगवान श्रीकृष्ण गोप तथा ब्रजबालाओं सहित गोवर्धन की ओर चल दिए| पर्वतराज गोवर्धन को दर्शन देकर अंगुलि पर धारण कर लिया और समस्त ब्रजवासियों का भय हर लिया तथा अपने वचन तथा सेवक हनुमान की प्रतिज्ञा भी पूरी की|