पक्षी चोर (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर दरबार में बैठे थे| तभी दरबान ने सूचना दी कि पक्षियों का एक सौदागर बादशाह से मिलना चाहता है| बादशाह ने आज्ञा दे दी|
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सौदागर हुआ और कहने लगा – “बादशाह सलामत, मैं पक्षियों का सौदागर हूं, पिछले दिनों मैंने बंगाल में एक बहुत ही खूबसूरत राजहंस एक हजार रुपये में खरीदा था| उस राजहंस को मैंने एक बहुत बड़े स्वर्ण पिंजरे में बंद करके अपने घर के एक कमरे में टांग दिया था| कुछ दिनों तक तो सबकुछ ठीक था, किन्तु कल से वह राजहंस उस पिंजरे से गायब है| हुजूर, मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि उसे मेरे ही किसी नौकर ने चुराया होगा, क्योंकि बाहर का आदमी उस पिंजरे तक पहुंच ही नहीं सकता था|”
बादशाह अकबर ने पूरी बात सुनने के बाद सौदागर के सभी नौकरों को दरबार में बुला लिया और उनसे पूछताछ की, किन्तु कोई नतीजा नहीं निकल पाया| बीरबल की तरफ देखने लगे बादशाह अकबर| बीरबल समझ गया कि अब उन्हें ही इस मामले को सुलझाना है|
बीरबल ने सभी नौकरों को बड़े गौर से देखकर कहा – “वाह रे चोर, मैं तुझे पहचान गया, तेरी इतनी हिम्मत? पक्षी को मारकर खा गया और उसके पंख पगड़ी में छिपा कर दरबार में भी हाजिर हो गया|”
उन नौकरों में जो सचमुच चोर था, वह डर गया| उसे लगा, शायद गलती से उसकी पगड़ी में पक्षी के पंख रह गए हैं| वह नजरें बचाकर पगड़ी पर हाथ फेरने लगा, किन्तु बीरबल की नजरें सतर्क थीं| उन्होंने उस नौकर को गिरफ्तार करने का आदेश दिया|
जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उसने पक्षी को चुरा कर खा लेना स्वीकार कर लिया|
बादशाह अकबर तथा सौदागर बीरबल के न्याय से बेहद खुश हुए|