पैसे की थैली किसकी (बादशाह अकबर और बीरबल)
दरबार लगा हुआ था| बादशाह अकबर राज-काज देख रहे थे| तभी दरबान ने सूचना दी कि दो व्यक्ति अपने झगड़े का निपटारा करवाने के लिए आना चाहते हैं|
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बादशाह ने दोनों को बुलवा लिया| दोनों दरबार में आ गए और बादशाह के सामने झुककर खड़े हो गए|
“कहो क्या समस्या है तुम्हारी?” बादशाह ने पूछा|
“हुजूर, मेरा नाम काशी है, मैं तेली हूं और तेल बेचने का धंधा करता हूं; और हुजूर यह कसाई है| इसने मेरी दुकान पर आकर तेल खरीदा और साथ में मेरी पैसों की थैली भी ले गया| जब मैंने इसे पकड़ा और अपनी थैली मांगी तो यह उसे अपनी बताने लगा, हुजूर अब आप ही न्याय करें|”
“जरूर न्याय होगा, अब तुम कहो तुम्हें क्या कहना है?” बादशाह ने कसाई से कहा|
“हुजूर, मेरा नाम रमजान है और मैं कसाई हूं| हुजूर, जब मैंने अपनी दुकान पर आज के मांस की बिक्री के पैसे गिनकर थैली जैसे ही उठाई, यह तेली आ गया और मुझसे यह थैली छीन ली| अब उस पर अपना हक जमा रहा है, हुजूर, मुझ गरीब के पैसे वापस दिला दीजिए|”
दोनों की बातें सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए| उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके हक में फैसला दें| उन्होंने बीरबल से फैसला करने को कहा| बीरबल ने उससे पैसों की थैली ले ली और दोनों को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया|
बीरबल ने सेवक से एक कटोरे में पानी मंगवाया और उस थैली में से कुछ सिक्के निकालकर पानी में डाले और पानी की गौर से देखा| फिर बादशाह से कहा – “हुजूर, इस पानी में सिक्के डालने से तेल का जरा-सा भी अंश पानी में नहीं उभरा है| यदि यह सिक्के तेली के होते तो यकीनन उन सिक्कों पर तेल लगा होता और वह तेल पानी में भी दिखाई देता|”
बादशाह ने भी पानी में सिक्के डाले, पानी को गौर से देखा और बीरबल की बात से सहमत हो गए| बीरबल ने उन दोनों को दरबार में बुलवाया और कहा – “मुझे पता चल गया है कि यह थैली किसकी है| काशी, तुम झूठ बोल रहे हो, यह थैली रमजान कसाई की है|”
“हुजूर, यह थैली मेरी है|” काशी एक बार फिर बोला|
बीरबल ने सिक्के डले पानी वाला कटोरा उसे दिखाते हुए कहा – “यदि यह थैली तुम्हारी है तो इन सिक्कों पर कुछ-न-कुछ तो तेल अवश्य होना चाहिए, पर तुम भी देख लो… तेल तो अंश मात्र भी नजर नहीं आ रहा है|”
काशी चुप हो गया|
बीरबल ने रजमान कसाई को उसकी थैली दे दी और काशी को कारागार में डलवा दिया|