नीयत में खोट

नीयत में खोट

एक नगर में जीर्णधन नामक एक बनिया रहता था| उसकी आर्थिक दशा काफ़ी खराब चल रही थी| इसलिए उसने किसी दूसरे बड़े शहर में जाकर अपना भाग्य अजमाने की सोची|

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उसके पास ज्यादा कुछ तो था नही, केवल पूर्वजों की धरोहर एक लोहे की तराजू थी| उस तराजू को उसने अपने एक विश्वस्त महाजन मित्र के पास बतौर अमानत के रूप में रख दिया और अपना ज़रुरी सामान लेकर दूसरे शहर की ओर चल दिया|

संयोगवश वहाँ उसका भाग्य चमक उठा और उसने थोड़े ही समय में ढेर सारा धन इकट्ठा कर लिया| फिर एक दिन सब कुछ समेत कर घर लौट आया|

घर आने के बाद वह अपने मित्र के पास जाकर बोला, ‘मित्र! अब मेरी वह तराजू लौटा दो, जिसे मैं तुम्हारे पास धरोहर रख गया था|’

‘आपकी तराजू तो चूहे खा गए| मुझे दुख है कि मैं तुम्हारी तराजू सुरक्षित नही रख पाया|’ महाजन मित्र ने दुख प्रकट करते हुए कहा|

जीर्णधन बनिया काफ़ी अनुभवी और बुद्धिमान था, महाजन की धूर्तता को भाँप उसे सबक सिखाने का विचार कर शांत स्वर में बोला, ‘मित्र! आप दुख या शोक न करे| एक दिन तो तराजू को नष्ट होना ही था| आपके यहाँ नष्ट हुई या मेरे यहाँ, क्या अंतर पड़ता है| खैर! लम्बी यात्रा कर मैं काफ़ी थक गया हूँ, इसलिए समीप की नदी में स्नान करने जा रहा हूँ| आप ज़रा अपने लड़के को मेरे साथ भेज दीजिए| स्नान करते वक्त वह मेरे वस्त्र-आभूषण आदि की देखभाल कर लेगा|’

महाजन ने सहर्ष स्वीकृति दे दी| जीर्णधन ने नदी तट पर पहुँचकर एक खोह में बालक को धकेल दिया और ऊपर से एक भारी शिला रख दी, जिससे बालक का बाहर निकलना कठिन हो गया|

स्नान आदि से निवृत होकर जीर्णधन महाजन के पास गया| महाजन ने जीर्णधन के साथ अपने पुत्र को न पाकर पूछा, ‘मेरा पुत्र कहाँ है मित्र?’

‘मित्र! बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि एक बाज आपके बालक को उठाकर ले गया| देखते-ही-देखते वह मेरी आँखों से ओझल हो गया| मैं बहुत ही दुखी और लज्जित हूँ|’

महाजन फौरन जीर्णधन की चालाकी को समझ गया और उसे तराजू वापस कर दी| तराजू को पाकर जीर्णधन ने भी महाजन के बेटे को खोह में से निकालकर उसे सौंप दिया|


कथा-सार

भूलकर भी विश्वासघाती का संग न करे| अगर फिर भी आपके साथ कोई अनहोनी हो जाए तो जीर्णधन की तरह बुद्धिमानी से काम ले| लोहा ही लोहे को काटता है| जब भारी-भरकम तराजू चूहे चट कर सकते है तो हष्ट-पुष्ट बालक को भला बाज क्यों नही उठा ले जा सकता|