निर्भयता
‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ और हम इसे लेकर रहेंगे- का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बाल्यावस्था से ही कुछ उच्च सद्गुणी- सत्य भाषण एवं अदभूत साहस से परिपूर्ण थे|
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अदभूत स्मरणशक्ति एवं गणित में उनकी प्रतिभा देखकर शिक्षक उनका सम्मान करते थे| बचपन से ही अंयाय वह कभी नहीं सहते थे| एक बार उनकी कक्षा के साथियों ने मूँगफली खाकर उसके छिलके कक्षा के कमरे में बिखेर दिए| गुरुजी ने कक्षा में आते ही लड़कों से छिलके उठाने के लिए कहा, परंतु बाल ने मूँगफली नहीं खाई थी, उसने छिलके उठाना स्वीकार नहीं किया| कक्षा के अध्यापक ने यह शिकायत बाल के पिता श्रीगंगाधर जी को पहुँचाई| पिता ने पुत्र का समर्थन किया और कहा- “बाल कभी बाहर खाने की चीजें नहीं खाता और हमेशा सच ही बोलता है|”
बड़े होकर भी उनकी साहसिक वृति में कमी नहीं आई| सन् 1997 में सूरत के कांग्रेस का अधिवेशन गरम एवं नरम दल वालों के संघर्ष के कारण बीच में ही खत्म हो गया था| सम्मेलन के बाद जब लोकमान्य तिलक पूना लौटने के लिए स्टेशन जाने लगे, तब कुछ लोगों ने परामर्श दिया- “आप स्टेशन अकेले मत जाइए| अधिवेशन के असफल होने से कुछ गुंडे रास्ते में मौजूद हैं, वे आपको चोट पहुँचा सकते हैं|” बिल्कुल स्वाभाविक ढ़ंग से तिलक बोले- “मैं अपनी रक्षा के लिए विदेशी पुलिस की मदद लेने की बजाय अपने देशवासियों के हाथों मरना कहीं अधिक श्रेयकर मानूँगा|”