न माया मिली न राम
सुंदन वन में एक शेर रहता था| एक दिन भूख के मारे उसका बुरा हाल था| उस दिन उसे आसपास कोई शिकार नहीं मिला था| अभी वह थककर बैठा ही था कि कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक खरगोश का शावक दिखाई दिया| वह पेड़ कि छाया में उछल-कूद रहा था| शेर उसे पकड़ने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ा| खरगोश शावक ने शेर को अपनी ओर आते देखा तो वह जान बचाने के लिया दौड़ा|
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लेकिन शेर ने दो ही छलांगों में उसे धर-दबोचा| फिर जैसे ही शेर ने उसकी गर्दन चबानी चाही, कि उसे एक हिरन दिखाई पड़ा| उसने छोटे-से खरगोश को छोड़ दिया और हिरन की ओर लपका| खरगोश का बच्चा उसके पंजे से छूटते ही भाग गया| उधर हिरन ने शेर को अपनी ओर लपकते देखा तो लंबी-लंबी छलांगें भरता हुआ भाग खड़ा हुआ| शेर हिरन को नहीं पकड़ पाया|
इधर खरगोश भी हाथ से गया और उधर हिरन भी नहीं मिला| खरगोश के बच्चे को छोड़कर शेर पछताने लगा| उसने सोचा की किसी ने सच ही कहा है जो आधी को छोड़कर पूरी को प्राप्त करने के लिए दौड़ते है, उन्हें आधी से भी हाथ धोना पड़ता है|
कथा-सार
ज्यादा लोभ करना ठीक नही, जो मिल जाए उसी को काफ़ी समझना चाहिए| भूखे शेर को पेट भरने के लिए खरगोश मिल गया था, लेकिन हिरन को देखते ही उसने उसे छोड़ दिया क्योंकि वह छोटा था| जब हिरन को पकड़ने दौड़ा तो वह हाथ न आया और खरगोश भी रफूचक्कर हो गया| शेर को मन मारकर भूखा ही रहना पड़ा|