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मुर्ख बिल्लियाँ

सड़क पर एक रोटी पड़ी हुई थी| तभी एक बिल्ली की नज़र उस रोटी पर पड़ी| लेकिन जब तक वह उस रोटी तक पहुँचती कि एक दूसरी बिल्ली ने उस पर झपट्टा मारा|

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दोनों बिल्लियाँ आपस में लड़ पड़ी| दोनों ही उस रोटी पर अपना-अपना हक जताने लगी| काफ़ी देर तक लड़ने के बाद एक बिल्ली ने सुझाव देते हुए कहा, ‘हम इस रोटी को आधा-आधा बाँट लेते हैं, मैं इसके दो टुकड़े कर देती हूँ, एक तुम ले लेना, एक मैं|’

‘तुम क्यों इसके दो टुकड़े करोगी? बड़ा टुकड़ा अपने पास रखने के लिए| मैं करूँगी इसके दो टुकड़े|’

‘क्या तुम बेईमानी नही करोगी?’

इस तरह एक बार दोनों में झगड़ा बढ़ गया| इतने में वहाँ एक बंदर आया| बंदर को देखकर दोनों बिल्लियों ने उसी से रोटी के दो बराबर टुकड़े करने को कहा| बंदर बड़ा चालक था| उसने रोटी के दो टुकड़े किए और दोनों हाथों में रख कर उनकी बराबरी देखने लगी| उसे एक टुकड़ा कुछ बड़ा लगा| उसने उनमें से थोड़ी रोटी तोड़ कर खा ली| इस बार बंदर को दूसरा टुकड़ा बड़ा लगा और उसने उसमें से थोड़ी रोटी तोड़ कर खा ली| इस तरह थोड़ा-थोड़ा करके उसने पूरी रोटी चट कर ली और दोनों बिल्लयाँ मुहँ ताकती रह गई|


कथा-सार

छोटे-मोटे विवादों को आपस में मिल-बैठ कर सौहार्द्रपूर्ण ढंग से सुलझा लेना चाहिए| बिल्लियों ने बंदर को मध्यस्थ बनाया तो वह चतुर उन्हें ही गच्चा दे गया| आधे के चक्कर में पूरे से भी हाथ धोना पड़ा| ध्यान रहे, दो मूर्खों की लड़ाई में फ़ायदा तीसरे को ही होता है|

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