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मौत से भी मज़ाक

खुदीराम बोस भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारी थे| 19 वर्ष की अवस्था में ही अंग्रेजों पर हमला पहला बम फेंककर, हाथ में भगवद् गीता लेकर ‘वंदे मातरम्’ का नारा लगाते हुए फाँसी का फंदा चूम लिया था|

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इन्हीं युवक खुदीराम बोस को जिस दिन फाँसी होने वाली थी, उस दिन वह पूरी तरह निश्चित थे, प्रसन्न थे| उन्हें प्रसन्नता थी कि वह देश की स्वाधीनता की लड़ाई में अपना योग देने के कारण फाँसी की सजा भुगतने जा रहे हैं| फाँसी के दिन ब्रह्मा मुहूर्त में ही जाग गए| युवक को देखने के लिए मुसलमान जेल-अधिक्षक आए| उस किशोर युवक को देखकर उस अधिकारी की आँखें भर आई| उन्होंने पूछा- “बेटे, किसी चीज की तमन्ना है?” खुदीराम बोले- “कुछ नहीं! केवल यह चाहता हूँ- मेरी मातृभूमि आजाद हो जाए|” जेल-अधिक्षक बोले- “इस समय कोई चीज खाना चाहोगे?” खुदीराम बोले- “कुछ नहीं|” जेल-अधिक्षक का दिल नहीं माना| वह घर जाकर मीठे-मीठे आम ले आए और बोले- “बेटा, यह सौगात है| खा लो|” खुदीराम ने कहा- “बाबा, धन्यवाद|”

जेल-अधिक्षक चले गए| कुछ देर बाद जब आए तब देखा- आम वैसे ही रखे हैं| उन्होंने पूछा- “बेटे, आम खाए नहीं?” खुदीराम ने उत्तर दिया- “फाँसी का फंदा याद गया| नहीं खा सका|” जेल-अधीक्षक ने आर्डर देते हुए कहा- “ये आम उठा लो| किसी और को दे दो|”

वार्डर ने आम उठाए तो वे पिचक गए| युवक खुदीराम ठहाके मारकर हँस पड़ा| उसने सब आम चूसकर फुलाकर रख दिए थे| उसने मौत से भी मजाक किया था|

बूढ़े जेल-अधिक्षक उस युवक की जिंदादिली और साहस देखकर खुश थे, पर उनकी फाँसी से उनकी आँखों से आँसू टपकने लगे| साहसी लोग मौत से भी नहीं डरते|