Homeशिक्षाप्रद कथाएँमित्रता की परख

मित्रता की परख

रमानाथ और दीनानाथ में गहरी दोस्ती थी| दोनों ही एक-दूसरे पर जान छिड़कने का दम भरा करते थे| एक दिन दोनों घने जंगल से होकर गुजर रहे थे कि मार्ग में उन्हें एक भालू आता दिखाई दिया| वह उनकी तरफ़ ही आ रहा था| रमानाथ तेजी से भागकर निकट के पेड़ पर चढ़ गया| उसने अपने मित्र दीनानाथ की तनिक भी चिंता नही की| वह बोला, ‘भाई दीनानाथ! जान है तो जहान है| तुम भी अपने बचाव का रास्ता खोजो|’

“मित्रता की परख” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

दीनानाथ को पेड़ पर चढ़ना नही आता था और न ही उसके पास वहाँ से भागने का कोई मौका था| अचानक उसके मस्तिष्क में एक सुनी-सुनाई बात याद आई कि मृतक को भालू नही खाते वह तुरंत ही साँस रोककर बेजान-सा होकर लेट गया| उसने अपनी आँखें बंद कर ली| भालू दीनानाथ के पास आया और उसके शरीर को सूँघकर चुपचाप आगे बढ़ गया|

जब भालू कुछ दूर निकल गया तब दीनानाथ उठ बैठा और रमानाथ भी पेड़ से नीचे उतर आया| उसने दीनानाथ से पूछा, ‘भालू ने तुम्हारे कान में क्या कहा था?’

दीनानाथ बोला, ‘उसने कहा कि स्वार्थी मित्रों से हमेशा दूर रहना चाहिए|’


कथा-सार

मित्रता करने का दम भरना बेशक अच्छी बात है| लेकिन यदि मित्रता निभानी नही आती तो सब बेकार है| सच्चे मित्र की परख तो संकटकाल में ही होती है| भालू ने बेशक दीनानाथ के कान में कुछ नही कहा, परंतु वह समझ गया कि रमानाथ से किनारा करना ही ठीक होगा| अतः स्वार्थी मित्रों से बचकर रहना चाहिए|

शिव का क
जब राजा