मिलना अकबर-बीरबल का (बादशाह अकबर और बीरबल)
एक बार अकबर बादशाह युद्ध के बाद दिल्ली की तरफ वापस आ रहे थे| रास्ते में उन्हें इलाहाबाद में गंगा किनारे पर पड़ाव डालना पड़ा|
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अकबर ने अपने एक दूत को वहां के राजा के पास भेजा| साथ में अकबर ने दूत के हाथ पत्र भी दिया, जिसे दूत ने राजा को दे दिया| पत्र में अकबर ने राजा से मिलने की इच्छा व्यक्त की थी|
झूंसी का राजा अकबर के पत्र को पढ़कर चिंतित हो गया| उसने समझा कि उसके छोटे से राज्य पर कब्जा करना चाहते हैं| राजा ने तुरंत बीरबल को बुलाया और स्थिति से अवगत कराया|
अकबर के पत्र का आशय समझ चुका था बीरबल| उसने कहा – “महाराज ऐसी कोई बात नहीं है| अकबर की इच्छा आपके राज्य पर अधिकार करने की नहीं है|”
“फिर क्या है?”
“आप चिंतित न हों महाराज, बादशाह अकबर की जो भी इच्छा है मैं उसका शीघ्र ही पता लगा लूंगा| आप मेरे साथ चलने की तैयारी करें|”
बीरबल दरबार से निकलकर मछेरों की बस्ती में पहुंचा| वहां पहुंचकर उसने नाव में ईंट, पत्थर, चूना लदवाया तथा कुछ राज मिस्त्रियों को गंगा पार चलने का आदेश दिया|
बीरबल अपना काम पूरा करके लौटा और राजा से कहा – “महाराज हम दो-तीन घंटे बाद चलेंगे|”
राजा बोला – “यदि हम लोगों को वहां पहुंचने में देर हो गई तो बादशाह का कहर हम पर टूट सकता है|”
“आप बेफिक्र रहें महाराज| मैं सब संभाल लूंगा|”
शाम के वक्त राजा और बीरबल बादशाह के पास पहुंचे और उन्हें सलाम बजाया|
अकबर उन्हें सम्मान के साथ खेमे में ले गया|
राजा ने डरते-डरते हाथ जोड़कर कहा – “जहांपनाह ने मुझे जैसे तुच्छ व्यक्ति को कैसे याद किया?”
“हमारा ऐसा कोई इरादा नहीं है| हमने तो तुम्हें केवल मुलाकात के लिए बुलाया था| मगर तुमने आने से पहले ये ईंट, पत्थर, चूना आदि क्यों भिजवाया?”
राजा ने कहा – “महाराज, इस बारे में मुझे कोई जानकारी नहीं है| सच तो यह है कि ये सब मेरे मंत्री ने अपनी समझ से किया है|”
अकबर बीरबल की ओर मुखतिब हुए|
बीरबल ने हाथ जोड़कर कहा – “महाराज, आपने हमारे महाराज को इसी उद्देश्य के लिए तो बुलाया था| आपकी इच्छा नदी के किनारे पर एक विशाल महल बनाने की थी न?”
“हां, ये सही है|”
अकबर बीरबल की बुद्धिमानी पर प्रसन्न हो उठे| उन्होंने तभी से बीरबल को अपने साथ रखने का फैसला कर लिया|
इसके बाद इलाहाबाद में विशाल किला बादशाह अकबर ने बनवया|