मानव सबसे श्रेष्ठ
आजादी से पूर्व की बात है| महात्मा गाँधी बिहार के नगर चम्पारन में अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ बैठे चरखा कात रहे थे| अचानक शोर की आवाज आई|
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पूछने पर पता चला कि कुछ व्यक्ति के एक हष्ट-पुष्ट बकरे को पुष्पमालाओं से सजाकर गाजे-बाजे के साथ काली माई को बलि चढ़ाने ले जा रहे हैं|
माता कस्तूरबा पसीज उठी| उन लोगों से उन्होंने पूछा- “इस बेचारे जानवर को कहाँ ले जा रहे हो? क्यों इसे मारते जा रहे हो?” उन लोगों ने बताया- “इस बकरे के बलिदान से देवी खुश हो जाएगी| रोग मिटेंगे, निर्धनता खत्म होगी और गाँव में सुख-शांति आ जाएगी|” इस पर बापू गाँधी जी बोल उठे- “बताओ जानवर अच्छा है या मनुष्य?” उन लोगों ने उत्तर दिया- “जानवर से श्रेष्ठ आदमी है|”
गाँधी जी ने इस पर कहा- “जब जानवर से आदमी श्रेष्ठ हैं तो उसके लिए अपनी बलि देकर सभी संकट दूर क्यों नहीं करते? बोलो, तुममें से कौन बलिदान के लिए तैयार है?” उन लोगों में से एक भी आदमी देवी को अपनी बलि देने के लिए तैयार नहीं हुआ| इस पर गाँधी जी ने कहा- “तो मेरी ही बलि दे दो|” यह सुनकर वे सभी बोले- “महाराज! हमसे भूल हुई, हम भविष्य में किसी प्राणी की बलि नहीं देंगे|” इस कहानी से हमें अहिंसा के मार्ग पर चलने की शिक्षा मिलती है|